भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में, हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार फाल्गुन मास की कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन निशा बेला में भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में अवतरित हुए थे, जिसके फलस्वरूप महाशिवरात्रि का पर्व हर्ष व उल्लास के साथ मनाया जाता है। ब्रह्मा, विष्णु व महेश त्रिदेवों में भगवान शिव संपूर्ण ब्रह्माण्ड के पालनहार, अकाल मृत्युहर्ता तथा सर्वसिद्धिदाता माने गए हैं। शिवपुराण के अनुसार प्रजापति दक्ष की कन्या सती का विवाह भगवान शिवजी से इसी दिन हुआ था।  महाशिवरात्रि फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 26 फरवरी, बुधवार को दिन में 11 बजकर 09 मिनट पर लगेगी, जो कि अगले दिन 27 फरवरी, गुरुवार को प्रात: 8 बजकर 56 मिनट तक रहेगी। श्रवण नक्षत्र 25 फरवरी, मंगलवार को सायं 6 बजकर 31 मिनट से 26 फरवरी, बुधवार को सायं 5 बजकर 24 मिनट तक रहेगा। तत्पश्चात् धनिष्ठा नक्षत्र लग जाएगा, जो 27 फरवरी, गुरुवार को दिन में 3 बजकर 44 मिनट तक रहेगा। चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्दशी तिथि (महानिशीथकाल रात्रि 11 बजकर 48 मिनट से 12 बजकर 38 मिनट तक) में मध्यरात्रि में भगवान शिवजी की पूजा विशेष पुण्य फलदायी होती है। महाशिवरात्रि से ही प्रत्येक माह हर मासिक शिवरात्रि का व्रत प्रारंभ किया जाता है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि मासिक शिवरात्रि के व्रत से सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

शिव आराधना का विधान- व्रतकर्ता को चतुर्दशी तिथि के दिन व्रत उपवास रखकर भगवान शिवजी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। त्रयोदशी तिथि के दिन एक बार सात्विक भोजन करना चाहिए। व्रतकर्ता को तिल, बेलपत्र व खीर से हवन करने के पश्चात् अपने व्रत का पारण करना चाहिए।

क्या करें शिवजी को अर्पित- भगवान शिवजी का दूध व जल से अभिषेक करके उन्हें वस्त्र, चंदन, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगन्धित द्रव्य के साथ बेलपत्र, कनेर, धतूरा, मदार, ऋतुपुष्प, नैवेद्य आदि अर्पित करके धूप-दीप के साथ पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर ही पूजा करनी चाहिए। शिवभक्त अपने मस्तिष्क पर भस्म और तिलक लगाकर शिवजी की पूजा करें तो पूजा का विशेष फल मिलता है। 

रात्रि के चारों प्रहर में की गई पूजा से होती है मनोकामना की पूर्ति-

प्रथम प्रहर : भगवान शिव जी का दूध से अभिषेक करें एवं ओम हृीं ईशान्य नम:-मंत्र का जप करें।

द्वितीय प्रहर : भगवान शिव जी का दही से अभिषेक करें तथा ओम हृीं अघोराय नम:-मंत्र का जप करें।

तृतीय प्रहर : भगवान शिव जी का शुद्ध देशी घी से अभिषेक करें साथ ही ओम हृीं वामदेवाय नम:-मंत्र का जप करें।

चतुर्थ प्रहर : भगवान शिव जी का शहद से अभिषेक करें एवं ओम हृीं सध्योजाताय नम:-मंत्र का जाप करें।