दिल्ली में नई सरकार बन गई है।दिल्ली में नई सरकार बन गई है। नई सरकार की बागडोर भाजपा की वरिष्ठ नेत्री रेखा गुप्ता के हाथों में सौंपी गई है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) 27 वर्ष बाद सत्ता में लौटकर खूब खुश है, परंतु आप की 10 साल की सरकार के बाद दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से 48 पर धमाकेदार जीत मिलना बताता है कि मतदाताओं को मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता और उनके मंत्रिमंडल से कितनी अधिक उम्मीदें हैं। चूंकि गुप्ता उसी भाजपा की सदस्य हैं, जिसकी केंद्र में भी सरकार है। इसलिए माना जा रहा है कि उनके कार्यकाल में निर्वाचित सरकार और केंद्र सरकार के प्रतिनिधि उप-राज्यपाल के बीच टकराव की स्थिति नहीं बनेगी। उल्लेखनीय है कि एक केंद्रीय कानून ने उप-राज्यपाल के विवेकाधीन अधिकारों में भारी इजाफा किया था। समझा जाता है कि केंद्र और राज्य सरकार के बीच यह नया तालमेल शासन के मोर्चे पर बहुत अधिक लाभ प्रदान करने वाला साबित होगा। समझ यही आया कि दिल्ली के हाकिम को दो क्षेत्रों की समस्याओं पर ध्यान देना होगा- मध्य वर्ग और गरीब। आप के उभार में कल्याण योजनाओं का अहम योगदान था। सरकारी स्कूलों में किफायती और गुणवत्ता वाली शिक्षा तथा मोहल्ला क्लिनिक के जरिए सस्ते इलाज की सुविधा प्रदान करना उसकी मुख्य उपलब्धियां रही हैं। मुफ्त बिजली-पानी गरीबों के लिए थे मगर मध्य वर्ग को भी उनका फायदा मिला। यह तरीका अपनाने और शुरुआती वर्षों में इन मोर्चों पर बेहतर प्रदर्शन करने के लिए आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के खजाने में पड़ी अधिशेष रकम का भरपूर इस्तेमाल किया, परंतु कल्याण योजनाओं पर खर्च तथा बढ़ते राजस्व व्यय ने वित्तीय स्थिति पर बहुत बोझ डाला और नई शराब लाइसेंसिंग तथा आबकारी नीति से राजस्व बढ़ने की उम्मीद भी तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तथा आप के अन्य वरिष्ठ मंत्रियों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की भेंट चढ़ गई। बिजली, परिवहन, स्वास्थ्य और कानून विभागों से अतिरिक्त मांग बताती है कि 2024-25 के बजट में घाटा हो सकता है। सामाजिक बुनियादी ढांचे में निवेश ठहरने और शहरी प्रदूषण बहुत अधिक बढ़ जाने के कारण जनता का आप से मोहभंग हो गया। भाजपा भी मुफ्त की सौगातों, स्वास्थ्य सुविधाओं, रोजगार और बुनियादी ढांचे से जुड़े वादों के बल पर सत्ता में लौटी है। गुप्ता अपनी सरकार का कम से कम एक चुनावी वादा पूरा करने की घोषणा पहले ही कर चुकी हैं। आम आदमी पार्टी के 2,100 रुपए प्रतिमाह की काट में भाजपा ने दिल्ली की महिलाओं को 2,500 रुपए महीने देने का वादा किया था। इसकी पहली किस्त 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर दी जाएगी। देखना यह है कि उनकी सरकार इसके लिए संसाधन कहां से जुटाएगी। दिल्ली के मतदाता पिछली सरकार के समय हुई राजनीति से उलट शांत और सार्थक शासन चाहते हैं। उदाहरण के लिए शहर की महिलाओं को मासिक आर्थिक मदद अच्छी लग सकती है मगर वे घर से बाहर सुरक्षा को अधिक तवज्जो देंगी। इस दिशा में काम करने के लिए दिल्ली पुलिस के साथ तालमेल करने का राज्य सरकार के पास अच्छा अवसर है। दिल्ली पुलिस केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन आती है। इसी तरह अब राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में एक ही पार्टी की सरकार हैं तो राज्य के पास जलापूर्ति सुधारने और नदी प्रदूषण से निपटने का भी दुर्लभ अवसर है। दिल्ली और हरियाणा इस पर हमेशा टकराते रहे हैं। वायु प्रदूषण ने भी दुनिया भर में दिल्ली की प्रतिष्ठा धूमिल की है मगर इस समस्या को भी हल किया जा सकता है क्योंकि इससे जुड़ी राज्य सरकारों में राजनीतिक एकता है। संक्षेप में कहें तो दिल्ली की नई सरकार के पास शासन में नाकाम रहने पर राजनीति का बहाना बनाने की संभावना बहुत कम है और अच्छा प्रदर्शन करने की उसकी चुनौती बहुत बढ़ गई है।