केंद्र सरकार ने सोमवार की रात मुख्य चुनाव आयुक्त के पद पर ज्ञानेश कुमार की नियुक्ति की दी। साथ में चुनाव आयुक्त के लिए हरियाणा कैडर के आईएस अधिकारी विवेक जोशी को नियुक्ति दी है। मालूम हो कि मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार 18 फरवरी को रिटायर हो गए। अब उनकी जगह ज्ञानेश कुमार कार्यभार संभालेंगे। ज्ञानेश कुमार केरल कैडर के आईएस अधिकारी हैं। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति में मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर चर्चा हुई थी, जिसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तथा नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने भाग लिया। इस पद के लिए बने पैनल में पांच शीर्ष अधिकारियों के नाम शामिल किए गए थे। राहुल गांधी का कहना था कि मुख्य चुनाव आयुक्त तथा चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के बारे में सुप्रीम कोर्ट 19 फरवरी को सुनवाई करने वाला है। ऐसी स्थिति में नियुक्ति की प्रक्रिया को 19 तक टाल दिया जाना चाहिए। लेकिन केंद्र सरकार ने 2-1 के बहुमत से मुख्य चुनाव आयुक्त तथा चुनाव आयुक्त की नियुक्ति कर दी है। कांग्रेस का मानना है कि चुनाव आयोग को कार्यपालिका के हस्तक्षेप से मुक्त होना चाहिए। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 2 मार्च 2023 को अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि मुख्य चुनाव आयुक्त तथा चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए एक पैनल का गठन होना चाहिए, जिसमें प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश तथा नेता प्रतिपक्ष को शामिल किया जाना चाहिए। लेकिन केंद्र सरकार ने अगस्त 2023 में संसद में एक विधेयक लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटते हुए पैनल में मुख्य न्यायाधीश की जगह एक कैबिनेट मंत्री को शामिल करने का प्रावधान लगा दिया। उसके बाद इसी आधार पर नियुक्ति हो रही है। ज्ञानेश कुमार का कार्यकाल 26 जनवरी 2029 तक है। इस वर्ष बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। वर्ष 2026 में पश्चिम बंगाल, असम, केरल तथा पुडुचेरी में विधानसभा का चुनाव होगा। उसके बाद भी ज्ञानेश कुमार के नेतृत्व में भी चुनाव का आयोजन होगा। विपक्षी पार्टियां शुरू से ही चुनाव आयोग पर आरोप लगाती रही है। कांग्रेस तथा दूसरी विपक्षी पाॢटयों का आरोप है कि चुनाव आयोग सत्ताधारी दल के पक्ष में काम करता है। कई बार विपक्षी पार्टियों ने ईवीएम के हैक होने का आरोप लगाकर बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग की है। चुनाव आयोग का कहना है कि ईवीएम को हैक नहीं किया जा सकता। इस मामले में चुनाव आयोग ने विपक्ष को चुनौती भी दी है। कुल मिलाकर यह मामला अभी विवादों में आ गया है। अब देखना है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या फैसला देता है? केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले ही नियुक्ति देकर विवाद को जन्म दे दिया है। डॉ. सुखबीर सिंह संधु दूसरे चुनाव आयुक्त हैं, जिनकी नियुक्ति पहले ही हो चुकी है। यह सही है कि चुनाव आयोग को निष्पक्ष होना चाहिए। आयोग को सभी पाॢटयों की शिकायतों को सुनकर उस पर कार्रवाई करनी चाहिए। लेकिन कुछ राजनीतिक पार्टियां अपने राजनीतिक हित के लिए चुनाव आयोग पर एकतरफा आरोप लगाती है, वह गलत है। चुनाव आयोग को बिना किसी के दबाव में आए काम करना चाहिए, ताकि उसकी निष्पक्षता बरकरार रहे। हमारे संविधान निर्माताओं ने स्वतंत्र चुनाव आयोग की जो कल्पना की थी उसको पूरा किया जाना चाहिए। ऐसा देखा गया है कि जब कांग्रेस सत्ता में थी तब उसने भी चुनाव आयोग का दुरूपयोग किया। पूर्व चुनाव आयुक्त टी. एन. शेषन का उदाहरण सबके सामने है, जिनको घेरने के लिए तत्कालीन कांग्रेसी सरकार ने दो चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया को शुरू की थी। हाल ही में हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र तथा दिल्ली में विधानसभा के चुनाव हुए हैं। इन चुनावों में भी विपक्षी पाॢटयों ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं। हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा को जीत मिली, जबकि झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा फिर से सत्ता में वापस लौटी। जम्मू-कश्मीर में हुए चुनाव में नेशनल कांफ्रेंस के नेतृत्व वाले गठबंधन ने विजय हासिल की। चुनाव आयोग को अपने राजनीतिक हित के अनुसार व्याख्या करना सही नहीं है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है जिसकी मिसाल दुनिया में दी जाती है। चुनाव आयोग भारतीय लोकतंत्र का प्रमुख स्तंभ है, जिसे मजबूत किया जाना चाहिए।