प्रत्येक शुभ कार्य को प्रारम्भ करने से पूर्व सर्वप्रथम गौरीपुत्र श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना करने का विधान है। सुख-समृद्धि के लिए संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत रखने की धार्मिक परम्परा है। चतुर्थी तिथि प्रथम पूज्यदेव भगवान श्रीगणेशजी को सर्मिपत है। प्रत्येक माह के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी तिथि के दिन संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत रखने की मान्यता है। ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि श्रीगणेशजी का प्राकट्य महोत्सव माघ मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन मनाने की धार्मिक व पौराणिक मान्यता है। माघ मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि को वक्रतुण्ड चौथ, माघी चौथ, संकष्टी तिल चतुर्थी, तिल चौथ, तिलकुटा चौथ एवं गौरी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस बार यह पर्व शुक्रवार, 17 जनवरी को विधि-विधानपूर्वक हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। माघ कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि गुरुवार, 16 जनवरी को अर्द्धरात्रि के पश्चात 4 बजकर 07 मिनट से शुक्रवार 17 जनवरी को अर्द्धरात्रि के पश्चात 5 बजकर 31 मिनट तक रहेगी। चन्द्रोदय रात्रि 8 बजकर 52 मिनट पर होगा। मघा नक्षत्र गुरुवार, 16 जनवरी को दिन में 11 बजकर 17 मिनट से शुक्रवार 17 जनवरी को दिन में 12 बजकर 45 मिनट तक रहेगा, तत्पश्चात पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र लग जाएगा। सौभाग्य योग का अनुपम संयोग शुक्रवार, 17 जनवरी को सम्पूर्ण दिन रहेगा। चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी तिथि के दिन यह व्रत रखने का विधान है। रात्रि में चन्द्र उदय होने के पश्चात् चन्द्रमा को अर्घ्य देकर उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना करके व्रत करना विशेष कल्याणकारी रहता है।
मनोकामना पूर्ण के उपाय : विमल जैन ने बताया कि माघ मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि से संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत का प्रारम्भ किया जाता है। यह व्रत महिला, पुरुष अथवा विद्यार्थी समस्त जनों के लिए समान रूप से फलदाई रहता है। श्रीगणेशजी की विशेष कृपा प्राप्ति एवं मनोकामना की पूर्ति के लिए संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत नियमित रूप से चार वर्ष या चौदह वर्ष तक करना चाहिए।
श्रीगणेश जी की पूजा का विधान : व्रत के दिन प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त हो स्वच्छ वस्त्र धारण कर अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना करने के पश्चात् श्रीगणेश जी का स्मरण करते हुए व्रत का संकल्प लेना चाहिए। व्रत के दिन व्रतकर्ता को नमक और तेल का सेवन वर्जित है। सम्पूर्ण दिन शुचिता के साथ निराहार व निराजल रहते हुए व्रत के दिन सायंकाल पुन: स्नान कर स्वच्छ व धारण करके श्रीगणेश जी की पंचोपचार, दशोपचार या षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए। श्रीगणेशजी को दूर्वा एवं मोदक अति प्रिय है, अतएव दूर्वा की माला, ऋतुफल, मेवे एवं मोदक अवश्य अर्पित करने चाहिए। इस पावन पर्व पर तिल व गुड़ से बने मोदक अर्पित करने की विशेष मान्यता है।
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