डिमा हसाओ जिले के उमरांग्सु क्षेत्र के एक कोयला खदान में हुए हादसे के बाद वहां फंसे सभी श्रमिकों के मरने की खबर है। हालांकि दुर्घटना के बाद सेना, नौसेना, असम राइफल्स, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ तथा अन्य एजेंसियों ने बचाव एवं राहत कार्य चलाया। किंतु वे लोग सफल नहीं हो सके। नौसेना के विशेष गोताखोरों को ऑपरेशन के लिए लगाया गया था, किंतु विलंब होने के कारण फंसे श्रमिकों को बचाया नहीं जा सका। उमरांग्सु की घटना ने राज्य में चल रहे अवैध कोयला खनन के मुद्दे को फिर से चर्चा में ला दिया है। इस दुर्घटना से यह सीख मिलती है कि राज्य में चल रहे अवैध कोयला खनन एवं दूसरी अवैध गतिविधियों पर रोक लगनी चाहिए। राज्य की कुछ सीमेंट कंपनियां भी कुछ अवैध रूप से काम कर रही हैं। प्रश्न यह उठता है कि अवैध रूप से कोयले का खनन कैसे चल रहा है? इस पूरे मामले की जांच होनी चाहिए। अवैध कोयला खनन से लेकर उसकी ढुलाई तथा गंतव्य स्थान तक पहुंचने के मामले की तह में पहुंचना जरूरी है। बिना वैध लाईसेंस, खनन लीज तथा सुरक्षा मानकों को अपनाए बिना अवैध खनन का काम चल रहा है। इसमें बड़ी-बड़ी हस्तियां शामिल हैं। इसके पीछे एक बड़ा सिंडिकेट काम कर रहा है, जिसकी पहुंच सत्ता के गलियारों तक है। अवैध खनन से लेकर निर्धारित स्थान तक पहुंचने में प्रशासन और पुलिस का पूरा सहयोग रहता है। खनन मालिकों, प्रशासन तथा पुलिस की सांठगांठ श्रमिकों को असमय काल के गाल में धकेल रही है। अगर खनन से लेकर गंतव्य स्थान तक पहुंचने तक की विस्तृत जांच की जाए तो सब कुछ उजागर हो सकता है। दिशा-निर्देश का पालन किये बिना अवैध कोयला खनन का जारी रहना यह दर्शाता है कि खनन मालिकों तथा पुलिस के बीच सांठगांठ है। अगर प्रशासन चाहे तो खनन मालिकों के खिलाफ एमएमडीआर कानून, 1957 के तहत कार्रवाई कर सकती है। इस कानून के तहत दोषी व्यक्ति को पांच वर्ष तक जेल तथा प्रति हेक्टेयर पांच लाख तक जुर्माना किया जा सकता है। अवैध कोयला खनन का काम विशेष रूप से दुर्गम क्षेत्रों में होता है। किसी आकस्मिक दुर्घटना घटने की स्थिति में वहां पहुंचना काफी मुश्किल होता है। घटनास्थल पर पहुंचने के लिए समय भी ज्यादा लगता है। इसके बावजूद सुरक्षा मानकों की परवाह किये बिना वहां के श्रमिकों को खतरे में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। प्रशासन ऐसे लोगों को बिना अनुमति के क्यों अवैध खनन करने के लिए अनुमति दे देती है? इसके पीछे भ्रष्टाचार भी एक बड़ी वजह है। उमरांग्सु की घटना में भी जब तक सेना, नौसेना तथा अन्य एजेंसियों के अधिकारी एवं जवान पहुंचे तब तक उमरांग्सु कोयला खदान में 100 फीट तक पानी भर चुका था। इससे ऑपरेशन चलाने वाले जवानों को काफी परेशानी हुई। जिला प्रशासन ने दोषी व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर लिया है, किंतु मुख्य आरोपी अभी भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर है। केंद्र सरकार ने इस मामले को कानून एवं व्यवस्था का मुद्दा मानते हुए राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में दे दी है। इस तरह के मामले भ्रष्टाचार के दलदल में फंसकर रह जाते हैं। अवैध कोयला खनन करने वाले मालिकों की गैर-जिम्मेदाराना प्रवृत्ति से सुरक्षा एजेंसियों पर आर्थिक बोझ बढ़ता है। सरकार ने इस मामले में लोगों को शिकायत करने के लिए खनन प्रहरी-ऐप शूरू किया है, जो एक अच्छा कदम है। इसके साथ ही आम जनता को भी इस तरह की अवैध गतिविधियों पर जागरूक होना चाहिए। राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा अवैध कोयला खनन पर रोक लगाने के बावजूद ऊपरी असम के कई इलाकों में अवैध खनन का काम चल रहा है। अगर प्रशासन चौकस रहता तो इस तरह की घटनाएं नहीं होती। राज्य सरकार को इस पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए दोषी व्यक्ति के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। यह काम उमरांग्सु के साथ-साथ सभी जगहों पर होना चाहिए, जहां इस तरह का अवैध धंधा चल रहा है।
अवैध कोयला खनन
