भारतीय संस्कृति के हिन्दू सनातन धर्म में प्रत्येक माह की तिथियों एवं व्रत त्यौहारों की अपनी खास पहचान है। सनातन धर्म में व्रत त्यौहार की परंपरा काफी पुरातन है। मास व तिथि के संयोग होने पर ही पर्व मनाया जाता है। चांद्रमास के अनुसार प्रत्येक मास में दो बार एकादशी पड़ती है। सबकी अपनी अलग-अलग महिमा है। पौष मास में शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि पुत्रदा एकादशी के रूप में जानी जाती है। इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णुजी की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना की जाएगी। ऐसी मान्यता है कि जिनको संतान की प्राप्ति न होती हो, उन्हें आज के दिन नियम-संयम के साथ भगवान श्रीहरि के शरण में रहकर पुत्रदा एकादशी का व्रत-उपवास रखना चाहिए। ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि पौष शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि 9 जनवरी, गुरुवार को दिन में 12 बजकर 23 मिनट पर लग रही है जो 10 जनवरी, शुक्रवार को प्रात: 10 बजकर 20 मिनट तक रहेगी। कृत्तिका नक्षत्र 9 जनवरी, गुरुवार को दिन में 3 बजकर 07 मिनट से 10 जनवरी, शुक्रवार को दिन में 1 बजकर 46 मिनट तक रहेगा। इस दिन सम्पूर्ण दिन शुभयोग रहेगा।  10 जनवरी, शुक्रवार को उदया तिथि में एकादशी तिथि का मान होने से पुत्रदा एकादशी का व्रत इसी दिन रखा जाएगा। व्रत का विधान :  विमल जैन ने बताया कि व्रतकर्ता को एकादशी के पूर्व रात्रि में भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए। एकादशी तिथि (व्रत) के अपने दैनिक नित्य कृत्यों से निवृत्त होकर स्नान ध्यान के पश्चात् स्वच्छ व धारण कर पुत्रदा एकादशी व्रत का संकल्प लेना चाहिए, पुत्रदा एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान श्रीविष्णुजी की पूजा-अर्चना के पश्चात् उनकी महिमा में श्रीविष्णु सहस्रनाम, श्रीपुरुषसूक्त तथा श्रीविष्णुजी से सम्बन्धित मन्त्र ' श्रीविष्णवे नम:' या 'नमो भगवते वासुदेवाय' का जप अधिक से अधिक संख्या में करना चाहिए। 

व्रतकर्ता के लिए विशेष : सम्पूर्ण दिन निराहार रहकर व्रत सम्पादित करना चाहिए। व्रत का पारण द्वादशी तिथि के दिन किया जाता है। एकादशी तिथि के दिन चावल ग्रहण नहीं किया जाता। इस दिन अन्न ग्रहण न करके  विशेष परिस्थितियों में दूध या फलाहार ग्रहण किया जा सकता है। साथ ही व्रत के समय दिन में शयन नहीं करना चाहिए। पुत्रदा एकादशी के व्रत व भगवान श्रीविष्णुजी की विशेष कृपा से सभी मनोरथ सफल होते हैं, साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि, आरोग्य के साथ ही सन्तान-सुख की प्राप्ति होती है।

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