भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह अब इस दुनिया में नहीं रहे। लेकिन उनको आर्थिक सुधारों के लिए हमेशा याद किया जाएगा। उनका सरल व्यक्तित्व एवं सादगी भारतीय राजनीति के लिए अनुकरणीय है। वर्ष 1990 में भारत आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा था। खाड़ी युद्ध के कारण भारत की आर्थिक स्थिति बदतर हो चुकी थी। वर्ष 1991 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव ने मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाकर भारत की आर्थिक स्थिति को सुधारने का बड़ा दायित्व सौंपा था। मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल में भारत को तेजी से आर्थिक सुधार के पथ पर बढ़ाया। इसका नतीजा यह हुआ कि अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों के लिए भारत अच्छा गंतव्य बन गया। विदेशी पूंजी का तेजी से भारत में प्रवाह हुआ तथा बड़ी बड़ी कंपनियां आने लगीं। वैश्वीकरण, उदारीकरण एवं निजीकरण लाकर डॉ. मनमोहन सिंह ने भारतीय अर्थ-व्यवस्था को जो मजबूती दी उसका लाभ देश को मिलने लगा। एक अर्थशास्त्री के रूप में उन्होंने अपने दायित्व का बखूबी पालन किया। वे दस साल तक यानी 2004 से 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। उस दौरान उनको कुछ आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा। खासकर उनके दूसरे कार्यकाल में दबाव में काम करने तथा सहयोगी दलों के मंत्रियों के भ्रष्टाचार पर चुप्पी साधने का आरोप भी लगा। कुछ क्षेत्रों में निजीकरण को लेकर भी ऊंगली उठायी गई, किंतु वे खुद बेदाग रहे। इन सारी चीजों के बीच मनरेगा, आरटीआई, आधार कार्ड, शिक्षा का अधिकार जैसे साहसी फैसलों के लिए उनको याद किया जाएगा। अमरीका के साथ असैन्य परमाणु समझौते पर उनके साहसिक निर्णय को हमेशा याद किया जाएगा। हालांकि असैन्य समझौता के वक्त कुछ सहयोगी दलों द्वारा आपत्ति की गई थी, किंतु वे पीछे नहीं हटे। उनके कुछ फैसलों को लेकर कांग्रेस के भीतर भी असहमति थी। अपने स्वभाव के कारण वे विपक्षी दलों के बीच भी लोकप्रिय थे। उनके स्वर्गवास से लेकर अंतिम संस्कार तक सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी सहित दूसरी पार्टियों के नेताओं ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। नरेन्द्र मोदी सरकार ने सात दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की। लेकिन उनके स्मारक के लिए जमीन आवंटन को लेकर जो राजनीति शुरू हुई है वह गलत है। डॉ. मनमोहन सिंह के स्मारक के लिए जमीन आवंटन होना चाहिए, किंतु उसको लेकर राजनीतिक बयानबाजी सही नहीं है। दिल्ली चुनाव को लेकर जो आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है, उसमें ऐसे व्यक्तित्व को घसीटना सही नहीं है। देश ने उनको जो सम्मान दिया है उसके वे हकदार हैं। वे हमेशा विवादों से दूर रहे। आज देश की अर्थ-व्यवस्था पांचवें स्थान से चौथे स्थान की ओर अग्रसर है। इस क्षेत्र में मनमोहन सिंह के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। उनका व्यक्तित्व व कृृतित्व भारतीय लोकतंत्र के लिए उदाहरण है।