हरियाणा विधानसभा का चुनाव परिणाम चौंकाने वाला है। तमाम एग्जिट पोलों में हरियाणा में कांग्रेस की बढ़त दिखाई गई थी, लेकिन चुनाव परिणाम ने सबको गलत साबित करते हुए भाजपा को बहुमत दे दिया है। 90 सदस्यीय हरियाणा विधानसभा में स्पष्ट बहुमत के लिए 46 सदस्यों की जरूरत होगी, जबकि भाजपा ने 48 सीटों पर विजय हासिल कर ली है। वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 41 सीटें मिली थीं। इस चुनाव परिणाम से कांग्रेस को करारा झटका लगा है। कांग्रेस को पूरी उम्मीद थी कि इस बार वह बहुमत के साथ सत्ता में लौटेगी किंतु ऐसा नहीं हो पाया। दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व वाली जननायक जनता पार्टी (जजपा) ने पिछले चुनाव में 10 सीट जीतकर किंगमेकर की भूमिका में थी, लेकिन इस बार इस पार्टी का खाता तक नहीं खुला है। हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी 16 हजार से ज्यादा मतों से विजयी हुए हैं किंतु उनके मंत्रिमंडल के आधा से ज्यादा सदस्य चुनाव हार गए हैं। हरियाणा में पहली बार किसी पार्टी ने तीसरी बार बहुमत के साथ जीत दर्ज की है। ऐसा लगता है कि इस बार हरियाणा में किसान, पहलवान, जवान का मुद्दा कांग्रेस के काम नहीं आया। हरियाणा के हार के पीछे सबसे बड़ा कारण कांग्रेस की गुटबाजी बताई जा रही है। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने उम्मीदवारों के चयन से लेकर चुनाव प्रचार तक अपना दबदबा बनाए रखा। लेकिन दूसरी तरफ हरियाणा की दलित चेहरा कुमारी शैलजा भी अपने को मुख्यमंत्री की दौर में शामिल रखना चाहती थी। इसको लेकर काफी दिनों तक गुटबाजी का माहौल रहा। हुड्डा गुट द्वारा शैलजा पर अभद्र टिप्पणी ने मामले को और बढ़ा दिया। बाद में कांग्रेस हाईकमान के हस्तक्षेप के बाद मामला शांत हुआ, किंतु तब तक गाड़ी आगे बढ़ चुकी थी। इसका असर हरियाणा के मतदाताओं पर पड़ना स्वाभाविक था। कांग्रेस के कुछ नेताओं द्वारा दिया गया अनाप-शनाप बयान भी पार्टी के हितों के विरुद्ध चला गया। चुनाव परिणाम पर आरंभिक तौर पर गौर करने से पता चलता है कि दो-तीन बड़े फैक्टर हैं जिसका प्रभाव चुनाव पर पड़ा है। आम आदमी पार्टी ने (आप) हरियाणा के सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया था। उसके बाद इंडियन लोकदल तथा बहुजन समाज पार्टी ने भी अलग से अपनीं किस्मत आजमाई थी। जजपा और आजाद समाज पार्टी के गठबंधन के मैदान में उतरने से मामला बहुकोणीय हो गया। वोटों के विभाजन से भाजपा को लाभ मिला है। कई पार्टियों के मैदान में उतरने से जाट, दलित तथा किसान मतदाताओं के मतों का विभाजन हुआ है। अब तक कि रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा की महिलाओं ने भाजपा के पक्ष में जमकर मतदान किया है। हरियाणा का पावर सेंटर भूपेंद्र सिंह हुड्डा के इर्द-गिर्द रहने से भी पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता नाराज हुए जिसका खामियाजा कांग्रेस को उठाना पड़ा है। इस चुनाव में इंडियन लोकदल जैसी पार्टियों का भी अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। एक समय ऐसा था जब हरियाणा में इन पार्टियों का बोलबाला था। जम्मू-कश्मीर में एग्जिय पोल के अनुमान के अनुसार ही चुनाव परिणाम सामने आया है। नेशनल कांफ्रेंस व कांग्रेस गठबंधन को 90 सदस्यीय विधानसभा में स्पष्ट बहुमत मिल गया है। हालांकि नेशनल कांफ्रेंस के पास ही सत्ता की बागडोर रहेगी क्योंकि उसके पास अकेले दम पर 40 से ज्यादा सीटें आई हैं। भाजपा को जम्मू क्षेत्र में आशातीत सफलता नहीं मिली। कुल 43 सीटों में से भाजपा को 29 सीटें मिली हैं। अगर भाजपा को जम्मू क्षेत्र में 40 के आसपास सीटें मिल जातीं तो शायद सत्ता में आने का मौका हो सकता था क्योंकि उपराज्यपाल के पास पांच सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार है। महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीडीपी को जबर्दस्त धक्का लगा है। कुल मिलाकर जम्मू-कश्मीर में भाजपा के नेतृत्व में मजबूत विपक्ष होने जा रहा है जो लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है।