हरियाणा विधानसभा चुनाव भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए प्रतिष्ठा प्रश्न बना हुआ है। इस बार का विधानसभा चुनाव त्रिकोणीय होने जा रहा है। भाजपा तथा कांग्रेस दोनों के बागी उम्मीदवार सिरदर्द बने हुए हैं। सभी पार्टियों ने चुनाव प्रचार के दौरान अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। आरोप-प्रत्यारोप के तीखे दौर जारी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरियाणा के अपने अंतिम चुनावी रैली के दौरान कांग्रेस पर तीखा हमला किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि कांग्रेस राम मंदिर के निर्माण, जम्मू-कश्मीर में भारत का संविधान लागू करने, लोकसभा एवं विधानसभा में महिलाओं को आरक्षण देने, मुस्लिम महिलाओं के लिए तीन तलाक कानून लाने के मामले में हमेशा सरकार का असहयोग किया एवं बाधा उत्पन्न किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि कांग्रेस की यह नीति है कि हम न काम करेंगे और न दूसरे को काम करने देंगे। दूसरी तरफ कांग्रेस किसान आंदोलन तथा संविधान की रक्षा के मुद्दे उछाल कर मतदाताओं को अपने पक्ष में करने में लगी हुई है। वर्तमान चुनाव में नाराजगी और सहानुभूति का भी खेल चल रहा है। इस बार के चुनाव में विकास की जगह जातीय समीकरण का मुद्दा जोरशोर से उठ रहा है। इस बार ऐसा लगता है कि जाट वोटों में बंटवारा होगा, जिससे कांग्रेस तथा भाजपा दोनों को नुकसान हो सकता है। दोनों ही पार्टियों में इसको लेकर चिंता है। चुनाव के शुरूआत में ही कुमारी शैलजा का ग्रुप पहले से ही बगावती तेवर अपनाए हुए था, किंतु अंत में आलाकमान द्वारा बीचबचाव के बाद युद्ध विराम हुआ है। कुमारी शैलजा विधानसभा में टिकट नहीं मिलने से नाराज हैं। अब देखना है कि युद्ध विराम का असर मतदान के दौरान कितना पड़ता है? इस चुनाव में व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप का दौर तेजी से चल रहा है। भाजपा और कांग्रेस के साथ-साथ बहुजन समाज पार्टी (बसपा) व इनेलो तथा जजपा एवं आजाद समाज पार्टी के गठबंधन के मैदान में उतरने से मामला दिलचस्प हो गया है। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस को थोड़ी बढ़त मिलती दिखाई दे रही थी। उस वक्त कांग्रेस तथा भाजपा को पांच-पांच सीटों पर विजय मिली थी। जमीनी स्तर पर संगठन मजबूत होने का लाभ भाजपा को निश्चित रूप से मिलेगा। कांग्रेस फिर से संविधान बदलने का मुद्दा उछाल कर अपना वोट बैंक मजबूत करने की कोशिश कर रही है। इस बार आम आदमी पार्टी ने भी सभी 90 सीटों पर अपने उम्मीदवार को उतार कर अपनी सियासी जमीन तलाशने की कोशिश कर रही है। हरियाणा चुनाव में बड़ी संख्या में निर्दलीय प्रत्याशी अपना भाग्य आजमा रहे हैं। इससे भी भाजपा और कांग्रेस दोनों को सियासी नुकसान पहुंचने की आशंका है। हरियाणा में 21 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जाति की है जो 90 में से 30 विधानसभा क्षेत्रों में निर्णायक स्थिति में हैं। 17 विधानसभा क्षेत्र आरक्षित हैं। बसपा व इनेलो गठबंधन के मैदान में उतरने से अनुसूचित जाति के मतदाताओं में विभाजन होने की आशंका है। अगर इनमें विभाजन हुआ तो राष्ट्रीय पार्टियों को नुकसान पहुंच सकता है। भाजपा पिछले चुनाव से सबक लेते हुए अनुसूचित जाति के मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए कांग्रेस पर लगातार हमला कर रही है। हरियाणा में सड़कों की स्थिति खराब है, इसको लेकर भी जनता हरियाणा सरकार से नाराज है। सरकार विरोधी लहर भी भाजपा के लिए मुसीबत बन सकती है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण में वर्गीकरण करने का मुद्दा भी चुनावी मुद्दा बना हुआ है। हरियाणा के 90 सदस्यीय विधानसभा के लिए कुल 1031 उम्मीदवार मैदान में हैं। एडीआरने 1028 उम्मीदवारों के बारे में अध्ययन किया है, जिसे पता चलता है कि दागी उम्मीदवारों की संख्या में इस बार वृद्धि हुई है। कुल उम्मीदवारों में से 133 उम्मीदवारों के खिलाफ मामले दर्ज हैं जो कुल संख्या का 13 प्रतिशत हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में यह संख्या 10 प्रतिशत था। इस बार के चुनाव में 1028 में से 538 उम्मीदवार करोड़पति हैं, जबकि 101 महिला उम्मीदवार मैदान में हैं। 95 उम्मीदवारों के खिलाफ गंभीर मामले दर्ज हैं, जो पिछले चुनाव के मुकाबले 3 प्रतिशत ज्यादा हैं। कुल मिलाकर हरियाणा विधानसभा का चुनाव परिणाम राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करेगा।
हरियाणा विधानसभा चुनाव
