मार्क्सवादी नेता अनुरा कुमारा दिसानायके ने श्रीलंका के नए राष्ट्रपति के रूप में शपथ ले ली है। आज से पांच वर्ष पहले दिसानायके का श्रीलंका की राजनीति में कोई महत्वपूर्ण वजूद नहीं था। इस बार के चुनाव में मुख्य विपक्षी दल के उम्मीदवार साजिथ प्रेमदासा को पराजित कर दिसानायके ने यह उपलब्धि हासिल की है। श्रीलंका के तत्कालनी राष्ट्रपति रोनिल विक्रमसिंघे तीसरे स्थान पर रहे। दिसानायके को चुनाव में 42.31 प्रतिशत, जबकि प्रेमदासा को 32.81 प्रतिशत मत मिले। दिसानायके को चीन का करीबी माना जाता है। उन्होंने जनथा विमुक्थी पेरामुना (जेवीपी) पार्टी से उम्मीदवार थे। श्रीलंका के युवा मतदाताओं पर दिसानायके का अच्छा प्रभाव रहा। सबसे बड़ी बात यह है कि इस बार के चुनाव में वहां की जनता ने दिसानायके की बात पर विश्वास किया तथा वहां के पारंपरिक राजनेताओं को खारिज कर दिया। दिसानायके ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान वहां के छात्रों तथा मजदूरों के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया। साथ में उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य एवं परिवहन के क्षेत्र में बदलाव का भी जिक्र किया। वर्ष 2022 में श्रीलंका दिवालीया होने के कगार पर था। उस वक्त वहां की जनता गोटबाया राजपक्षे सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर चुकी थी। उस वक्त गोटबाया समेत श्रीलंका के बड़े नेता देश छोड़कर भाग चुके थे। उस वक्त रोनिल विक्रमसिंघे ने श्रीलंका की बागडोर संभाली तथा देश को आर्थिक संकट से बाहर निकालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चीन के कर्जजाल में फंसे श्रीलंका को भारत ने तत्काल सहायता देकर संकट से उबरने में मदद की। उस वक्त भारत ने खाद्य सामग्री, दवाइयां तथा ईंधन की आपूर्ति की ताकि श्रीलंका के लोगों को परेशानी से बचाया जा सके। उस वक्त अनुरा कुमारा दिसानायके ने भी भारत की पहली की प्रशंसा की थी। भारत के निमंत्रण पर दिसानायके चुनाव से पहले भारत आए थे। उस वक्त उन्होंने कहा था कि वे चीन और भारत के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश करेंगे। साथ में उन्होंने यह भी कहा था कि उनकी पार्टी भारत के साथ द्विपक्षीय राजनयीक संबंधों को मजबूत करने पर जोर देगी। दिसानायके की जीत के बाद चीन की सरकारी मीडिया ने जमकर उनकी तारीफ की है तथा कहा है कि दिसानायके के शासन में चीन और श्रीलंका के संबंध और मजबूत होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दिसानायके को बधाई दी है। देखना है कि अब कार्यभार ग्रहण करने के बाद दिसानायके की विदेश नीति किस तरह काम करती है। वे भारत और चीन के साथ संतुलन बनाकर आगे चलना चाहते हैं या चीन की गोद में बैठना पसंद करते हैं। दिसानायके श्रीलंका में रहने वाले तमिलों एवं मुसलमानों को स्वायत्तता देने के खिलाफ हैं। वैसे उनकी पार्टी की नीति भारत के खिलाफ है, किंतु हाल के महीनों में दिसानायके की नीति में नरमी आई है। अगर उनको अपनी अर्थव्यवस्था को ठीक रखना है तो भारत के साथ मधुर संबंध बनाकर रखना होगा। चीन हर किसी देश को अपने कर्जजाल में फंसाकर अपना स्वार्थ सिद्धी करने में लगा रहता है। वर्ष 2022 में जब श्रीलंका संकट से जूझ रहा था उस वक्त भारत ने ही आगे बढ़कर उसकी सहायता की थी। चीन श्रीलंका की धरती का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों के लिए करता रहा है। वहां के नए राष्ट्रपति को इस बारे में चीन की साजिश के प्रति सतर्क रहना पड़ेगा, अन्यथा भारत के साथ संबंध खराब हो सकते हैं। दिसानायके की नीति को देखते हुए वहां का व्यापारी समाज भी थोड़ा चिंतित है क्योंकि उनको भय है कि उनकी सरकार व्यापारियों के हितों के खिलाफ फैसला ले सकती है। कुल मिलाकर देखा जाए तो दिसानायके के सामने बड़ी चुनौती है। भारत को इस पूरे मामले में पैनी नजर रखनी होगी।
श्रीलंका का सियासी समीकरण
