सूरज और चांद के बाद भारत की नजर पर शुक्र ग्रह पर है। केंद्र की कैबिनेट ने चार स्पेस प्रोजेक्ट पर मुहर लगाई है। इसमें से एक है वीनस यानी शुक्र ग्रह से जुड़ा मिशन। इसे वीनस ऑर्बिटर मिशन (ङ्कह्ररू) नाम दिया गया है। पीएम मोदी ने सोशल मीडिया एक्स पर अपनी पोस्ट के जरिए इसकी पुष्टि की है। पोस्ट में लिखा है कि भारत मार्च 2028 तक अपने मिशन को लॉन्च कर देगा। इस मिशन को इसरो (इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन) अंजाम देगा। वीनस ऑर्बिटर मिशन के लिए भारत 1236 करोड़ रुपए खर्च करेगा। इसमें से 824 करोड़ रुपए सिर्फ इसके स्पेसक्राफ्ट पर खर्च होंगे। ऐसे में सवाल है कि आखिर क्या है यह मिशन, इसरो इस मिशन के जरिए क्या साबित करना चाहता है और इसका स्पेसक्राफ्ट क्यों खास है?
क्या है वीनस ऑर्बिटर मिशन? : पीएम मोदी ने अपनी पोस्ट में लिखा है, इस मिशन के जरिए शुक्र ग्रह का गहराई से अध्ययन किया जाएगा और स्पेस सेक्टर में काम करने वालों को नए मौके मिलेंगे। इस पूरे मिशन में क्या-क्या होगा, अब इसे समझ लेते हैं।
इस मिशन के जरिए इसरो शुक्र ग्रह की कक्षा में स्पेसक्राफ्ट भेजेगा। कई प्रयोग किए जाएंगे। इसके अलावा शुक्र ग्रह की सतह का परीक्षण किया जाएगा और वहां के वातावरण को समझने की कोशिश की जाएगी। शुक्र सोलर सिस्टम का सबसे गर्म ग्रह है और यहां सूर्य के असर को समझने के लिए भी अध्ययन किया जाएगा। द प्रिंट को दिए बयान में इसरो एक अधिकारी का कहना है, ‘यह एक तरह का ऑर्बिटर मिशन है। इस मिशन के लिए भेजा जाने वाला स्पेसक्राफ्ट शुक्र ग्रह की कक्षा में तो पहुंचेगा लेकिन इसे ग्रह की सतह पर नहीं उतारा जाएगा। स्पेसक्राफ्ट को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि यह सतर से ऊपर रहते हुए ही सारे प्रयोग करेगा और जानकारी जुटाएगा।’ यही वजह है कि इसका स्पेसक्राफ्ट खास है। इसके जरिए ही प्रयोगों को अंजाम दिया जाएगा। मिशन के लिए शुक्र ग्रह को ही क्यों चुना? : शुक्र के अध्ययन से पृथ्वी को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी। हमारे सौर मंडल का यह सबसे गर्म ग्रह कभी रहने योग्य था। शुक्र ग्रह पर हुए बदलाव के कारणों का अध्ययन किया जाना है क्योंकि इस कभी रहने योग्य और पृथ्वी के समान माना जाता था। शुक्र और पृथ्वी को सिस्टर प्लेनेट भी कहा जाता है। इससे दोनों के विकास को समझा जा सकेगा। शुक्र आकार, भार समेत कई मामलों में पृथ्वी के समान है। सूर्य के बाद इस दूसरे ग्रह पर घना वातावरण और सल्फ्यूरिक एसिड से बने बादल हैं। शुक्र की सतह पर वायुमंडलीय दबाव समुद्र तल पर पृथ्वी से 90 गुना अधिक है। इसरो के अधिकारियों का कहना है कि शुक्र मिशन भारत को ग्रह के बारे में महत्वपूर्ण और दिलचस्प जानकारी खोजने में मदद कर सकता है।