भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से शुरू होकर अमावस्या तक पितृ पक्ष  रहता है। इस समय पितरों के लिए तर्पण, दान, पिंडदान, श्राद्ध कर्म करने के साथ-साथ तुलसी से जुड़े नियमों का पालन करना भी जरूरी होता है। माना जाता है इस समय पितृ पृथ्वी लोक पर आते हैं और अपने परिजनों के द्वारा किए गए श्राद्ध  कर्म से तृप्त होते हैं। पितृ पक्ष के दौरान पितरों के लिए दान पुण्य और तर्पण किया जाता है। इन उपायों से पितृ दोषों से भी मुक्ति मिलती है। इस वर्ष 17 सितंबर से पितृपक्ष शुरू हो रहा है। पितृ पक्ष के दौरान तुलसी  की पूजा के साथ-साथ कुछ नियमों का पालन करना जरूरी होता है। आइए जानते हैं मान्यतानुसार पितृ पक्ष के दौरान तुलसी से जुड़े किन नियमों का पालन करना जरूरी है।

तुलसी की पूजा : पितृपक्ष के दौरान तुलसी की पूजा जरूर करनी चाहिए। इस समय तुलसी की पूजा नहीं करने से पितर नाराज हो सकते हैं। हालांकि, तुलसी की पूजा करने वाले व्यक्ति को श्राद्ध से जुड़े कार्यों से दूर रहना चाहिए।

तुलसी को छूना वर्जित : पितृपक्ष के दौरान तुलसी को छूना वर्जित माना जाता है। हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे को पवित्र माना जाता है। इसलिए उसे स्पर्श करने के लिए साफ-सफाई और पवित्रता का ध्यान रखना बेहद आवश्यक है।

तुलसी की पत्तियां तोड़ना : पितृपक्ष के दौरान भूलकर भी तुलसी की पत्तियां नहीं तोड़नी चाहिए। इस समय तुलसी को छूना और पत्तियां तोड़ना वर्जित माना जाता है। पत्तियों को तोड़ने से पितरों के नाराज होने का भय रहता है। पितरों के नाराज होने से जीवन में परेशानियां बढ़ सकती हैं।

पितृपक्ष में तुलसी उपाय : पितृपक्ष के दौरान नियमित रूप से तुलसी की पूजा करनी चाहिए। इस समय तुलसी की माला धारण करना भी शुभ माना जाता है। तुलसी के पौधे की देखभाल से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके साथ ही इस समय तुलसी की पूजा करने वाले व्यक्ति को श्राद्ध से जुड़े कार्यों से दूर रहना चाहिए। घर के ऐसे व्यक्ति को तुलसी की पूजा करनी चाहिए जो श्राद्ध से जुड़े कार्य में भाग नहीं ले रहा हो।