भारतीय संस्कृति में सभी पर्वों का विशेष महत्व है। पर्व विशेष देवी-देवताओं की महिमा से जुड़े हुए हैं। व्रत त्योहार व पर्व पूर्ण भक्तिभाव के साथ मनाने की परंपरा है। भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन अनंत चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। अनंत चतुर्दशी जैन धर्म का विशेष पर्व है। इस दिन जैन धर्मावलम्बी जैन मंदिर में विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना करते हैं, साथ ही व्रत-उपवास भी रखते हैं। इस पर्व पर क्षीरसागर में शेषनाग की शैया पर शयन करने वाले भगवान् श्रीविष्णु जी की विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है। ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथि 17 सितंबर, मंगलवार को उदया तिथि में होने के फलस्वरूप अनंत चतुर्दशी का व्रत इसी दिन रखा जाएगा।

ज्योतिर्विद् ने बताया कि भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथि 16 सितंबर, सोमवार को दिन में 3 बजकर 11 मिनट पर लगेगी जो 17 सितंबर, मंगलवार को दिन में 11 बजकर 45 मिनट तक रहेगी। चतुर्दशी तिथि के दिन शतभिषा नक्षत्र रहेगा। शतभिषा नक्षत्र 16 सितंबर, सोमवार को दिन में 4 बजकर 33 मिनट से 17 सितंबर, मंगलवार को दिन में 1 बजकर 54 मिनट तक रहेगा। अनंत चतुर्दशी के व्रत से व्यक्ति को अपने जीवन में भगवान् श्रीविष्णु जी के आशीर्वाद से जीवन में सुख-समृद्धि का सुयोग बना रहता है, साथ ही व्यक्ति का जीवन धन-धान्य से परिपूर्ण रहता है। अनंत चतुर्दशी के व्रत को 14 वर्ष तक नियमपूर्वक करने पर जीवन के समस्त दोषों का शमन होता है तथा सुख-समृद्धि में अभिवृद्धि होती रहती है। व्रत के दिन अनंत चतुर्दशी के कथा का पठन व श्रवण भी किया जाता है।  ऐसे करें व्रत व पूजा : ज्योतिषविद् के अनुसार प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान-ध्यान के पश्चात् अनन्त चतुर्दशी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। तत्पश्चात् अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना चाहिए। आज के दिन भगवान् श्रीविष्णुजी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन कच्चे सूत के धागे को 14 गांठ लगाकर उसे हल्दी से रंगने के पश्चात् विधि-विधानपूर्वक अक्षत, धूप-दीप, नैवेद्य, पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए। इस सूत्र को अनंत सूत्र के नाम से जाना जाता है। 

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