भारतीय सनातन हिन्दू परम्परा में हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्एक मास की हर तिथि का अपना खास महत्व है। सभी तिथियों का किसी न किसी देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना से सम्बन्ध है। तिथि विशेष पर पूजा-अर्चना करके मनोरथ की पूर्ति की जाती है। भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को पद्मा, पार्श्व परिवर्तनी या जलझूलनी एकादशी नाम से जानी जाती है। प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि 13 सितम्बर, शुक्रवार को रात्रि 10 बजकर 31 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन 14 सितम्बर, शनिवार को रात्रि 8 बजकर 42 मिनट तक रहेगी। एकादशी तिथि के दिन शोभन योग 13 सितम्बर, शुक्रवार को रात्रि 8 बजकर 48 मिनट से 14 सितम्बर, शनिवार को रात्रि 7 बजकर 18 मिनट तक रहेगा। जिसके फलस्वरूप 14 सितम्बर, शनिवार को एकादशी का व्रत रखा जाएगा। पद्म पुराण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि चातुर्मास्य के दौरान भगवान विष्णु वामन रूप में पाताल में निवास करते हैं, भगवान श्रीविष्णु चातुर्मास्य के दूसरे मास में शयन शैय्या पर सोते हुए करवट बदलते हैं, इसलिए इस एकादशी का नाम पार्श्व परिवर्तनी एकादशी पड़ा है। इस एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। एकादशी व्रत का विधान—ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर गंगा-स्नानादि करके, गंगा-स्नान यदि सम्भव न हो तो घर पर ही स्वच्छ जल से स्नान करना चाहिए। तत्पश्चात् स्वच्छ वस्त्र धारण कर अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना के पश्चात् पद्मा/परिवर्तनी एकादशी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सम्पूर्ण दिन व्रत उपवास रखकर जल आदि कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। विशेष परिस्थितियों में दूध या फलाहार ग्रहण किया जा सकता है। आज के दिन सम्पूर्ण दिन निराहार रहना चाहिए, चावल तथा अन्न ग्रहण करने का निषेध है। भगवान् श्रीविष्णु की विशेष अनुकम्पा-प्राप्ति एवं उनकी प्रसन्नता के लिए भगवान् श्रीविष्णु जी के मन्त्र  ‘ॐ नमो नारायण’ या ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का नियमित रूप से अधिकतम संख्या में जप करना चाहिए। मन-वचन कर्म से पूर्णरूपेण शुचिता बरतते हुए यह व्रत करना विशेष फलदाई रहता है। अपने जीवन में मन-वचन कर्म से नियमित संयमित रहते हुए यह व्रत करना विशेष फलदाई रहता है। भगवान् श्रीविष्णु जी की श्रद्धा, आस्था भक्तिभाव के साथ आराधना कर पुण्य अर्जित करना चाहिए, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि, आरोग्य व सौभाग्य में अभिवृद्धि बनी रहे।