एक तरफ अमरीका भारत का अच्छा दोस्त होने का दावा करता है तो दूसरी तरफ वह साजिश भी करता रहता है ताकि भारत उसका पिछलग्गू बना रहे। चीन से मुकाबला करने के लिए अमरीका को भारत की जरूरत है। भारत इसके लिए तैयार भी है। लेकिन समस्या यह है कि अमरीका रूस के खिलाफ भी भारत का इस्तेमाल करना चाहता है, जिसके लिए भारत तैयार नहीं है। रूस भारत का सदाबहार दोस्त है। 1971 से लेकर अब रूस ने मुसीबत के वक्त में भारत का साथ दिया है। ऐसी स्थिति में भारत का भी दायित्व है कि रूस-यूक्रेन के युद्ध के समय रूस का साथ दे या तटस्थ बना रहे। यही काम भारत कर रहा है, जो अमरीका को पसंद नहीं है। अमरीका ने कई बार दबाव डालकर भारत को अपने पक्ष में करनी की कोशिश की लेकिन अब तक संभव नहीं हो पाया। अमरीका बांग्लादेश के सेंट मार्टिन द्वीप में सैन्य अड्डा बनाना चाहता था। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इसकी इजाजत नहीं दी। सेंट मार्टिन में अमरीकी सैन्य अड्डा बनने से अमरीका भारत के साथ-साथ बंगाल की खाड़ी तथा हिंद महासागर क्षेत्र में नजर रख सकता था। हसीना भारत की अच्छी दोस्त है, जिस कारण अमरीका हसीना के माध्यम से भारत पर दबाव बनाना चाहता था। अमरीका ने सजिश रचकर हसीना सरकार का तख्ता पलट करवा दिया। हसीना ने अमरीका के खिलाफ इस साजिश का पर्दाफाश कर अमरीका एवं यूरोप की पोल खुलकर रख दी। आश्चर्य की बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमरीका राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ टेलीफोन पर हुई वार्ता में बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार का मुद्दा उठाया था, किंतु अमरीका के बयान में उसका जिक्र नहीं किया गया। दुनिया भर में मानव अधिकारों की उल्लंघन की दुहाई देकर बयान देने वाला अमरीका बांग्लादेश के मामले में जुबान बंद रखा हुआ है। बाहरी दबाव बेअसर होता देख अमरीका भारत के अंदरुनी मामले में दबाव बढ़ाकर नरेंद्र मोदी सरकार को बैकफुट पर धकेलना चाहता है। इसका उदाहरण यह है कि हाल ही में अमरीका राजनयिकों ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू से भेंट की थी। उसके बाद चंद्रबाबू नायडू का बयान आया कि उनकी पार्टी वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक के पक्ष में नहीं है। इसी तरह अमरीकी राजनयिकों ने जम्मू-कश्मीर के नेशनल कांफ्रेंस के नेताओं के साथ बैठक की। इससे पहले दिल्ली में आम आदमी पार्टी और जदयू नेताओं के साथ बैठक हुई थी। इन सारी जगहों पर हुई बैठक के बाद जो बयान आया है वह मोदी सरकार के खिलाफ ही था। इसका अर्थ स्पष्ट है कि अमरीका घरेलू मोर्चे पर कूटनीतिक दबाव बढ़ाकर मोदी सरकार को पूरी तरह अपने तरफ करने की कोशिश में है। मोदी सरकार को चुनौती को चुनौती देना अच्छी तरह पता है। 15 अगस्त को लाल किला  से अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट कहा कि भारत बुद्ध का देश है, युद्ध का नहीं। हमारा इतिहास है कि शक्तिशाली होने के बावजूद भारत किसी के लिए भी खतरा नहीं बना है। मोदी सरकार देश की राष्ट्रवादी शक्तियों को एकजुट कर एक जोरदार अभियान चला रही है। अपनी विदेश नीति में राष्ट्रहित को विशेष प्राथमिकता दी जा रही है। मोदी सरकार की यही नीति पश्चिमी देशों खासकर अमरीका को पसंद नहीं आ रही है। भारत सरकार को अमरीका की इस दोहरी नीति के प्रति सावधान रहने की जरूरत है। अमरीका के साथ भारत के अच्छे संबंध होना चाहिए, किंतु इसका यह मतलब नहीं है कि हम रूस जैसे विश्वसनीय दोस्त के साथ अपना संबंध खराब कर लें। यह सबको पता है कि अमरीका स्वार्थ के आधार पर दोस्ती और दुश्मनी करता है। अगर चीन की ओर से खतरा नहीं होता तो अमरीका कभी भी भारत के सामने दोस्ती का हाथ नहीं बढ़ाता। भारत सरकार को दुनिया के मामलों में संभलकर आगे बढ़ना होगा। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपनी कूटनीति से भारत की प्रतिष्ठा दुनिया में बढ़ाने में काफी मदद की है। आज दुनिया भारत की अहमियत समझती है।