शिवसागर जिले में राष्ट्रीय पंजा खिलाड़ी के साथ हुए दुर्व्यवहार की घटना की जितनी भी निंदा की जाए वह कम है। इस घटना के दोषी व्यक्ति को कड़ी सजा मिलनी चाहिए। पुलिस प्रशासन ने उसके खिलाफ कार्रवाई भी की है। लेकिन इस घटना के बाद जिस तरह शिवसागर के पूरे समाज को दोषी बताकर माफी मंगवाया गया, वह सही कदम नहीं है। राज्य के शिक्षा मंत्री के समक्ष वयोवृद्ध व्यक्ति तथा महिलाओं को माफी मंगवाने की घटना के बाद असम में उग्र जातीयता की भावना बढ़ी है, जो चंदा संस्कृृति को बढ़ावा दे रही है। उग्र जातीयता की भावना भड़का कर कुछ संगठन जबरन वसूली की प्रक्रिया को आसान बनाने में लगे हैं। वीर लाचित सेना के नेता शृंखल चालिहा ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि बाहर से आए व्यापारियों से गुंडा टैक्स वसूलता हूं। बाहर से आए जो कारोबार करेंगे उनको नगालैंड के एनएससीएन की तरह असम में टैक्स का भुगतान करना पड़ेगा। मालूम हो कि वीर लाचित सेना पर शिवसागर सहित ऊपरी असम के विभिन्न हिस्सों में रह रहे मारवाड़ी, बिहारी, बंगाली तथा अन्य व्यापारियों से समय-समय पर चंदा वसूलने का आरोप लग चुका है। अब तो शृंखल चालिहा ने स्वयं सच्चाई को स्वीकार कर लिया है। इन सबके बावजूद प्रशासन द्वारा कोई कार्रवाई नहीं किये जाने से ऐसे संगठनों का मनोबल बढ़ता जा रहा है। राज्य सरकार भी इस मामले में ढुलमुल नीति अपनाती रही है। नगांव जिले के धिंग में एक युवती के साथ हुई बलात्कार की शर्मनाक घटना के बाद जब ऊपरी असम में मियां भगाओ अभियान शुरू हुआ है तो उसके बाद ही प्रशासन की नींद खुली है। कानून और व्यवस्था बिगड़ने के डर से शिवसागर जिला प्रशासन ने ऑपरेशन बांड साइन के तहत वीर लाचित सेना के प्रशासनिक सचिव शृंखल चालिहा, जातीय संग्रामी सेना (असम) के अध्यक्ष सीटू बरुवा, अखिल असम अनुसूचित छात्र संस्था के महासचिव पारस ज्योति दास, आटासू के केंद्रीय महासचिव भास्कर ज्योति बरगोहाईं, आटासू के अध्यक्ष बसंत गोगोइ सहित 27 लोगों को तलब किया है। जातीय संगठनों के इन नेताओं को कार्यकारी मजिस्ट्रेट नकीब सईद बोरा के समक्ष पेश होने के लिए कहा गया है। इसके साथ ही शिवसागर जिला प्रशासन ने सार्वजनिक शांति के गंभीर उल्लंघन की संभावना की तत्कालीन रोकथाम के लिए शिवसागर के कुछ स्थानों पर धारा-163 बीएनएसएस के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दी है। अगर यह काम शिवसागर में हुई घटना के तुरंत बाद किया जाता तो शायद स्थिति इतनी नहीं बिगड़ती। असम विधानसभा में भी मंगलवार को शिवसागर का मुद्दा जोरदार ढंग से उठा। कांग्रेस विधायक दल के नेता देवब्रत सैकिया ने कहा कि अगर सरकार पहले ही एक्शन लेती तो ऐसी परिस्थिति पैदा न होती। शिवसागर की घटना के बाद ऊपरी असम के कई जगहों पर जातीय संगठनों द्वारा मनमानी करने की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हुई। आज स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि ऊपरी असम के कई जिलों में पुलिस तथा अर्द्धसैनिक बलों को मार्च करना पड़ रहा है। कानून-व्यवस्था की स्थिति को लेकर सवाल उठने लगे हैं। धिंग की घटना के बाद माहौल बहुत खराब हो गया है। पुलिस को धिंग की घटना के दोषी के खिलाफ सख्त कदम उठाने की जरुरत है। मुख्य आरोपी तफज्जुल इस्लाम पुलिस के साथ हुए एनकाउंटर में मारा गया। इस घटना में शामिल दो अन्य आरोपियों को गिरफ्तार कर फांसी की सजा तक पहुंचाने की जरुरत है। इस तरह के अपराधों को कभी भी स्वीकार नहीं किया जा सकता है। साथ ही जातीय संगठनों की मनमानी पर रोक लगनी चाहिए। शिवसागर के मामले में राज्य के सामाजिक संगठनों की भूमिका भी लचर रही है। सामाजिक संगठनों ने जातीय संगठनों की मनमानी के खिलाफ न तो आवाज उठाई और न नैतिक समर्थन ही दिया। ऐसा लगता है कि सामाजिक संगठन केवल अपना गुनगान करके ही अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत विश्वशर्मा स्पष्ट रूप से कह चुके हैं कि अब राज्य में चंदा संस्कृृति नहीं चलेगी। इससे राज्य का विकास बाधित होता है। अब सरकार के सामने यह चुनौती है कि वह स्थानीय संगठनों द्वारा सरेआम टैक्स वसूली के ऐलान से किस तरह निपटती है। अगर व्यापारियों के बीच भय का माहौल रहेगा तो राज्य का विकास संभव नहीं है। अब राज्य प्रशासन की जिम्मेवारी है कि वह राजनीतिक हितों की परवाह किये बिना व्यापारियों में व्याप्त असुरक्षा की भावना को दूर करने के लिए सख्त कदम उठाए।