त्रिपुरा पिछले कुछ दिनों से बारिश, लैंडस्लाइड और बाढ़ जैसे मौसमी कहर से जूझ रहा है। इलाके की जटिलता ने मौसम की गंभीरता को ज्यादा बढ़ा दिया है। 21 अगस्त की रात को भी कई हिस्सों में फिर से बाढ़ आ गई है। त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में 21 अगस्त को 24 घंटों में 233 मि.मी. की भारी बारिश दर्ज की गई है। मौसम विभाग के मुताबिक अगले चार दिनों तक खराब मौसम से राहत की संभावना नहीं है। हालांकि इसके बाद मामूली राहत मिलने की उम्मीद है। पिछले कुछ दिनों में लगातार बारिश और लैंडस्लाइड के कारण त्रिपुरा में कम से कम 26 लोगों की मौत हो गई और दो अन्य लापता हो गए। वहीं, राज्य के 450 राहत शिविरों में 65,400 लोगों ने शरण ली है, क्योंकि बारिश से उनके घर तबाह हो गए हैं। बाढ़ की वजह से बड़ी संख्या में लोग बेघर हो गए हैं। बचाव कार्यों के लिए हेलीकॉप्टरों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। राष्ट्रीय और राज्य आपदा प्रबंधन की टीमों के अलावा असम राइफल्स के जवान भी राहत और बचाव कार्य में जुटे हैं। उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश ने त्रिपुरा में गोमती पनबिजली परियोजना पर बने डंबूर बैराज का गेट खोले जाने के कारण कई इलाकों के डूबने का आरोप लगाया है। हालांकि केंद्र और राज्य सरकार ने इस आरोप का खंडन किया है। पनबजिली परियोजनाओं के जलाशयों से पानी छोड़ने के कारण दूसरे देशों के विस्तृत इलाकों के डूबने की समस्या और आरोप पुराने हैं। खासतौर पर खोवाई, वेस्ट त्रिपुरा, सिपाहीजाला, गोमती और दक्षिण त्रिपुरा के विस्तृत इलाके भयावह बाढ़ से जूझ रहे हैं। मुख्यमंत्री ने कुछ राहत शिविरों का भी दौरा किया है। इस बीच केंद्र सरकार ने राहत व बचाव कार्यों के लिए त्रिपुरा को 40 करोड़ रुपए की सहायता दी है। सरकारी अधिकारियों की मानें तो गोमती, पेनी, मुहुरी और खोवाई समेत राज्य की तमाम नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। शुक्रवार रात से बारिश कम होने के कारण कुछ इलाकों में हालत में मामूली सुधार है। लेकिन कुल मिलाकर बाढ़ की परिस्थिति अब भी गंभीर बनी हुई है। बांग्लादेश ने आरोप लगाया है कि त्रिपुरा के गोमती जिले में पनबिजली परियोजना से पानी छोड़े जाने की वजह से बांग्लादेश में कुमिल्ला चटगांव, नोआखाली और मौलवीबाजार जिलों के दर्जनों गांव पानी में डूब गए हैं, इससे करीब 18 लाख लोगों के प्रभावित होने का दावा किया गया है। दरअसल, बीते तीन दिनों से सोशल मीडिया पर ऐसी खबरें चल रही थी कि डंबूर बैराज से भारी मात्रा में पानी छोड़ने के कारण ही बांग्लादेश के कई इलाके बाढ़ की चपेट में है। लेकिन भारतीय विदेश मंत्रालय और त्रिपुरा सरकार ने इनका खंडन किया है। बिजली मंत्री रतन लाल नाथ ने कहा है कि बैराज का कोई गेट नहीं खोला गया है। इस पनबिजली परियोजना के तहत बने जलाशय की भंडारण क्षमता 94 मीटर है। जलस्तर बढ़ने पर पानी स्वचालित रूप से बाहर निकल जाता है। जलस्तर घटते ही पानी का प्रवाह रुक जाता है। यह परियोजना गोमती जिले में गोमती नदी पर बनी है। यहां बनने वाली बिजली में 40 मेगावाट बांग्लादेश को भी सप्लाई की जाती है। मंत्री का कहना था कि गोमती नदी दोनों देशों में बहती है। नदी के निचले इलाकों में बीते कई दिनों से लगातार होने वाली भारी बारिश ही बांग्लादेश में आई बाढ़ की प्रमुख वजह है। नदी विशेषज्ञों का कहना है कि बैराज से पानी छोड़े जाने के कारण आने वाली बाढ़ पर विवाद नया नहीं है। बांग्लादेश हर साल पश्चिम बंगाल के फरक्का के अलावा त्रिपुरा के डंबूर बैराज से पानी छोड़ने के कारण बाढ़ के आरोप लगाता रहा है। नेपाल और बिहार के मामले में हम यह देखते रहे हैं, इनमें कुछ हद तक सच्चाई हो सकती है, लेकिन बारिश के सीजन में रिकॉर्ड बारिश होने की स्थिति में बैराज से पानी छोड़ना भी जरूरी है। ऐसा नहीं करने की स्थिति में बैराज के टूटने और संबंधित इलाके में विनाशकारी बाढ़ का खतरा पैदा हो सकता है। दूसरी ओर बांग्लादेश में बाढ़ की प्रमुख वजह उसकी भौगोलिक स्थिति है, उसकी जमीन भारत के मुकाबले निचले इलाकों में स्थित है। गोमती, तीस्ता और गंगा समेत ज्यादातर नदियां भारत से बांग्लादेश में प्रवेश करती हैं। इन नदियों के उद्गम स्थल और बेसिन में भारी बारिश के कारण उनका जलस्तर काफी बढ़ जाता है। ऐसे में भारत के मुकाबले बांग्लादेश के निचले सीमावर्ती इलाकों का बाढ़ की चपेट में आना स्वाभाविक है। क्या ऐसी आपदा से बचने का कोई ठोस उपाय है? नदी विशेषज्ञों का कहना है कि बाढ़ जैसी प्राकृृतिक आपदा पर पूरी तरह अंकुश लगाना तो संभव नहीं है, लेकिन एक कारगर अर्ली वार्निंग सिस्टम के जरिए समय रहते लोगों को सतर्क कर जान-माल के नुकसान को काफी हद तक कम जरूर किया जा सकता है।