इसे विदेशी षड्यंत्र का हिस्सा कहें,या भारतीय लोकतंत्र को कमजोर करने की साजिश? देश में किसी भी घटना को मुद्दा बनाकर जगह जगह हिंसा, आंदोलन, रेल मार्गों को अवरुद्ध करने के प्रयास देखकर यह प्रश्न उत्पन्न होना स्वाभाविक है। देश के विभिन्न क्षेत्रों में यकायक रेलगाड़ि¸यां पटरियों से उतरने लगी हैं। रेल दुर्घटनाएं बढ़ने से जन-धन की हानि होने लगी हैं। भारतीय यातायात के प्रमुख साधन को कौन बाधित करने का प्रयास कर रहा है? यह स्पष्ट नहीं है। उड़ीसा में हुई भयंकर रेल दुर्घटना के बाद अनेक प्रदेशों में यात्री रेलों के बेपटरी होने के अनेक समाचार प्रकाश में आए हैं। विचारणीय प्रश्न यह है कि विश्व के सर्वाधिक आबादी वाले देश में रेल पटरियों व संपर्क मार्गों के चप्पे चप्पे पर किस किस पर नजर रखी जा सकती है। ऐसा प्रतीत होता है कि अराजक तत्व अपने राष्ट्र विरोधी कृृत्यों से तौबा करने के लिए तैयार नहीं है। दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि कुछ राजनीतिक दल प्रत्येक घटना या दुर्घटना में देश को बदनाम करने में कोई अवसर चूकना नहीं चाहते। आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक मुद्दों पर हर समय शासन-प्रशासन को घेरे रखना चाहते हैं, उन्हें केवल सरकार को बदनाम करने का बहाना भर चाहिए। ऐसे तत्व कभी हिंडनबर्ग के तथ्यहीन खुलासों के नाम पर देश के शेयर बाजार को अस्थिर करने का दाव खेलते हैं, तो कभी विदेशी शत्रुओं का समर्थन करके भारत की सीमाओं को असुरक्षित बताने से भी परहेज नहीं करते। कई बार तो पड़ोसी देशों की अस्थिरता को मुद्दा बनाकर अपने देश में वैसे ही हालात उत्पन्न करने के लिए लोगों को उकसाते हैं। कौन नहीं जानता कि सार्वजनिक स्थलों व रेल पथ को अवरुद्ध करने तथा रेल यात्रा को बाधित करने के उद्देश्य से रेल पटरियों पर अवरोधक लगाकर, पटरी के जोड़ों की क्लिप हटाकर, ज्वाइंट्स के बीच पत्थर फंसा कर, कुछ यू ट्यूबर वीडियो बनाते हैं तथा राष्ट्र विरोधी शक्तियों को देश में रेल दुर्घटनाएं बढ़ाने के गुर सिखाते हैं। यही नहीं समस्याएं और भी हैं। देश के टैक्स पेयर का बड़ा भाग मुफ्त की योजनाओं में व्यय करके समाज के एक बड़े वर्ग को नकारा बनाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी जा रही है। यदि जांच की जाए तो स्पष्ट होगा कि मुफ्त राशन योजना का लाभ ऐसे अपात्र उठा रहे हैं, जिनके अपने रोजगार व कारोबार हैं। यह विडंबना ही है कि सभी राजनीतिक दल व्यक्तिगत स्वार्थ के वशीभूत होकर माननीय सर्वोच्च न्यायालय की न्याय संगत निर्णयों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं और सत्ता बेबस होकर जन कल्याणकारी नीतियां लागू करने हेतु तैयार नहीं है। स्वाधीनता दिवस पर लालकिले की प्राचीर से धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता लागू करने की बात तो कही गई, मगर क्या इस दिशा में कोई भी राजनीतिक दल सामूहिक चिंतन करने के लिए तैयार है। ताज्जुब है, दलगत राजनीति की दल दल में गले तक डूबे लोग केवल चंद पूंजीपतियों, चंद धनाढ्य राजनीतिक परिवारों, तीन चौथाई सदी से आरक्षण का लाभ ले रहे धनाढ्य परिवारों को आरक्षण की परिधि से बाहर करने में हिचकिचा रही है। क्या इसका अर्थ यह नहीं लगाया जाना चाहिए कि देश में अराजक सोच से देश को बदनाम करने और आम आदमी को गारंटी के सपने दिखाने वालों के लिए जाति, धर्म, अलगाव उत्पन्न करने वाली विघटनकारी सोच तो है, मगर राष्ट्र के प्रति समर्पण भावना किसी व्यक्ति या राजनीतिक दल में नही है। 

ब्रह्मपुरी, मेरठ 

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