डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
देश के सुदूर क्षेत्रों में अनेक लोग समाज सेवा के विलक्षण कार्य करते रहे हैं। कुछ वर्ष पहले तक सरकारों का ध्यान उनकी तरफ जाता ही नहीं था। नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनते समय अपनी सरकार को गरीबों के प्रति समर्पित बताया था। अनेक सामाजिक, आर्थिक व लोक कल्याण के विषयों जैसे विचार पर अमल किया जा रहा है। इतना ही नहीं पिछले कुछ वर्षों से पद्म सम्मानों में भी यह परिलक्षित है। राष्ट्रपति भवन में पद्म सम्मान ग्रहण करने वाले वनवासी, ग्रामीण व अन्य निर्धन वर्ग के लोग भी मुख्य धारा में दिखाई देने लगे हैं। ऐसे सभी चित्र भाव विह्वल करते हैं। वर्तमान पीढ़ी को प्रेरणा देते हैं। संकल्प से सिद्धि का उदाहरण प्रस्तुत करते है। नरेन्दर मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पद्म पुरस्कारों में नया अध्याय जुड़ा है। इसमें गुमनाम समाजसेवकों, कलाकारों को भी शामिल किया गया। इस प्रकार यह प्रतिष्ठित पुरष्कार गांव ही नहीं वनवासी क्षेत्रों तक पहुंच गया है। इस संबद्ध में पिछले कुछ वर्षों की पद्म पुरस्कार सूची देखना दिलचस्प है। अब पद्म सम्मान समारोह में अद्भुत दृश्य दिखाई देते हैं। अक्सर चित्र भी अपने में बहुत कुछ कह जाते हैं। जब कोई गरीब महिला राष्ट्रपति के सिर पर आशीर्वाद का हाथ रखती है, जब ऐसे ही किसी अन्य सम्मानित व्यक्ति से प्रधानमंत्री हाथ जोड़ बतियाते हैं। कुछ वर्ष पहले तक ऐसी कल्पना भी मुश्किल होती थी। अब परंपरा का रूप ले चुकी है। प्रतिवर्ष पद्म सम्मान वितरण के समय ऐसा ही दृश्य रहता है। नरेन्द्र मोदी के चिंतन में यह सब सहज रूप में चलता है। उनसे संबंधित ऐसा ही चित्र प्रयागराज कुंभ में देखने को मिला था, जिसमें प्रधानमंत्री सफाई कर्मियों के पैर धो रहे हैं। इस भावना का चित्र राष्ट्रपति भवन में दिखाई दिया। जिसमें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद पद्म पुरस्कार प्रदान कर रहे हैं। उन्होंने सम्मान देते हुए एक समाजसेवी महिला के सामने सिर झुका दिया, इस बुजुर्ग महिला ने उनके सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया। इस चित्र पर विचार करते हैं तो एक नया अध्याय उभरता है।
देश के विभिन्न इलाकों में अनेक गुमनाम समाजसेवी हैं। जिन्होंने समाज के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। निःस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा करते रहे। बदले में कोई आकांक्षा नहीं की। धन दौलत, पद, यश, वैभव किसी की चाह नहीं थी। मीडिया या प्रचार से दूर रहे, गुमनामी में अपना कार्य करते रहे। अपवाद छोड़ दें तो पहले इनकी ओर शासन का ध्यान भी नहीं जाता था। कोई पहाड़ तोड़ कर अकेले ही सड़क बनाता रहा। वर्षों तक यह क्रम चला। शासन का ध्यान उधर गया होता तो उनका कार्य आसान हो गया होता। लेकिन हार नहीं मानी। पहाड़ को तोड़ कर मार्ग बनाकर ही दम लिया। इसी प्रकार अनेक लोग अपने अपने ढंग से समाजसेवा में जुटे हुए हैं। नरेन्द्र मोदी ने ऐसे गुमनाम लोगों को पद्म सम्मान देने का निर्णय लिया था। अब प्रतिवर्ष ऐसे लोगों को सम्मान पुरस्कार देने की परंपरा शुरू हुई।
पद्म पुरस्कारों की घोषणा हर साल गणतंत्र दिवस के मौके पर की जाती है। राष्ट्रपति मार्च अप्रैल में ये पुरस्कार प्रदान करते हैं। लेकिन कोरोना के चलते इस बार ये पुरस्कार नहीं दिए जा सके थे। बिहार के मधुबनी जिले में रहने वाली दुलारी देवी को पद्मश्री सम्मान मिला। बारह वर्ष की उम्र में ही शादी हो गई। सिर्फ सात साल बाद मायके वापस लौट आईं। यहीं से दुलारी का संघर्ष शुरू हुआ। दूसरों के घरों में झाड़ू पोछा किया करती थीं। बाद में झाड़ू की जगह कूची ने ले ली। इसके बाद मधुबनी पेंटिंग बनाने का जो सिलसिला दुलारी ने शुरू किया वो आज तक नहीं रुका। वह अब तक सात हजार मिथिला पेंटिंग बना चुकी हैं। डॉ. टी वीराघवन का नाम उत्तरी चेन्नई में दो रुपए वाले डॉक्टर के रूप में प्रतिष्ठित थे। इतनी फीस में ही मरीजों का उपचार करते थे। बाद में उन्होंने अपनी फीस 5 रु. कर दी थी। इससे अधिक कभी नहीं बढ़ाई। उनका यश बहुत था। अन्य डॉक्टर उनके विरोधी हो गए। उन्होंने अपनी फीस सौ रु. करने का उन पर दबाब बनाया। इसका उल्टा असर हुआ। उन्होंने फीस लेना ही बंद कर दिया। काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष विद्वान आचार्य रामयत्न शुक्ल लगभग 90 वर्ष की आयु में भी नई पीढ़ी को संस्कृत की निःशुल्क शिक्षा देते हैं। भूरी बाई जनजातीय परंपराओं पर अद्भुत चित्रकारी का हुनर दिखाया। मध्य प्रदेश की वनवासी भूरी बाई को पद्मश्री से सम्मानित किया गया। छुटनी देवी को समाज सेवा के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। 25 वर्ष पहले उन्हें डायन बताकर घर से निकाल दिया गया था। वह विचलित नहीं हुई। बल्कि इस कुप्रथा के विरुद्ध अभियान चलाया। इसमें उन्हें बड़ी हद तक सफलता मिली।
भागलपुर में डॉक्टर दिलीप कुमार सिंह को समाज और चिकित्सीय सेवा के लिए पद्मश्री से मिला। तिरानबे वर्षीय डॉ दिलीप कुमार सिंह गांव में रह कर गरीबों का निःशुल्क या नाममात्र का पैसा लेकर इलाज करते है। पश्चिम बंगाल के नारायण देबनाथ सत्तानबे वर्ष के हैं। सत्तर साल से बंगाली कॉमिक स्टि्रप्स बनाते आ रहे हैं। कॉमिक में डीलिट करने वाले एकमात्र भारतीय हैं। दुनिया में सबसे लंबी कॉमिक स्टि्रप चलाने का रेकॉर्ड उनके नाम है। संगीत के क्षेत्र में राजस्थान के लाखा खान को पद्मश्री मिला। वह छह भाषाओं हिंदी,मारवाड़ी, सिंधी, पंजाबी और मुल्तानी में गाते हैं। वह मांगणियार समुदाय में प्यालेदार सिंधी सांरगी बजाने वाले एकमात्र कलाकार हैं। सिंधी सारंगी के गुरु हैं। तमिलनाडु के 105 वर्षीय एम पप्पम्माल को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। वह भवानी नदी के किनारे अपना ऑर्गनिक फार्म चलाती हैं। अठत्तर साल के सुजीत चटोपाध्याय पूर्वी बर्धमान के अपने घर में पाठशाला चलाते हैं। सालभर के लिए सिर्फ एक रुपए की फीस लेते हैं। राजनीति के क्षेत्र में सुषमा स्वराज और मृदुला सिन्हा को मरणोपरांत पद्म सम्मान प्रदान किया गया। दोनों विभूतियों ने समाज सेवा के साथ ही अपनी विद्वता की भी छाप छोड़ी थी। सुषमा स्वराज के भाषण और मृदुला सिन्हा का लेखन लोगों को विशेष रूप में प्रभावित करता रहा। सुषमा स्वराज ने अपनी प्रत्येक जिम्मेदारी व संवैधानिक दायित्वों को कुशलता पूर्वक निर्वाह किया। सुषमा स्वराज का व्यवहार बहुत सहज रहता था। गोवा की पूर्व राज्यपाल मृदुला सिन्हा भी इसमें शामिल थी। मृदुला जी का जन्म बिहार मुजफ्फरपुर जिले के छपरा गांव में हुआ था। मनोविज्ञान में एमए करने के बाद शिक्षिका बनी थी। फिर मोतीहारी के एक विद्यालय में प्रिंसिपल बनी। यही से उनकी साहित्य साधना शुरू हुई थी। बाद में वह राजनीति में आई। वह राज्यसभा सदस्य भी रहीं। राजपथ से लोकपथ के अलावा नई देवयानी, ज्यों मेंहदी को रंग घरवास यायावरी आंखों से, देखन में छोटे लगे, सीता पुनि बोलीं, बिहार की लोककथाएं ढाई बीघा जमीन,मात्र देह नहीं है औरत, विकास का विश्वास आदि उनकी प्रसिद्ध कृतियां हैं।