राजस्थान के कोटा लोकसभा क्षेत्र से निर्वाचित भाजपा के सांसद ओम बिड़ला फिर से 18वीं लोकसभा के स्पीकर बन गए हैं। स्पीकर के लिए बिड़ला के अलावा कांग्रेस के के. सुरेश इंडिया गठबंधन की तरफ से उम्मीदवार थे। सत्तापक्ष की तरफ से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस पद के लिए सहमति बनाने की पूरी कोशिश की, किंतु कामयाबी नहीं मिली। विपक्षी नेता चाहते थे कि सरकार डिप्टी स्पीकर विपक्ष को देने का आश्वासन पहले ही दे दे, लेकिन सत्तापक्ष इसके लिए तैयार नहीं था। 26 जून को जब स्पीकर के चुनाव का समय आया तो सबको लग रहा था कि मतदान होगा। अभी तक स्पीकर के चुनाव के लिए मतदान नहीं हुआ है। जब प्रोटेम स्पीकर भर्तृहरि महताब ने जब मतदान की बात कही तो उस वक्त कांग्रेस की तरफ से कोई अनुरोध नहीं आया। इसका परिणाम यह हुआ कि ओम बिड़ला को ध्वनि मत से विजेता घोषित कर दिया गया।
हालांकि मतदान के बाद तृणमूल कांग्रेस के महासचिव अभिषेक बनर्जी ने कहा था कि मतदान होना चाहिए था। कांग्रेस ने बदले राजनीतिक माहौल को देखते हुए मतदान के लिए आवाज नहीं उठाई। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तृणमूल कांग्रेस की नाराजगी बड़ा कारण बताया जाता है। अभिषेक बनर्जी ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि कांग्रेस ने के. सुरेश का नाम आगे करने से पहले हमारी पार्टी के साथ कोई विचार-विमर्श नहीं किया। हालांकि समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने भी ऐसी ही प्रतिक्रिया व्यक्त किया। कांग्रेस को सबसे ज्यादा तृणमूल कांग्रेस से विरोध का भय लग रहा था। अगर तृणमूल कांग्रेस के सांसद वोटिंग के दौरान अनुपस्थित हो जाते तो इससे इंडिया गठबंधन के बारे में गलत संदेश जाता। इसके अलावा कुछ और अन्य पार्टियों ने भी ओम बिड़ला को समर्थन देने का संकेत दिया था। यही कारण है कि कांग्रेस ने तर्क दिया कि उसने के. सुरेश को अपना उम्मीदवार उतार कर विरोध व्यक्त कर दिया, किंतु देश की परंपरा का पालन करते हुए मतदान के लिए नहीं कहा।
दूसरा कारण यह है कि देश के कांग्रेस सहित विपक्षी पार्टी शासित राज्यों में विधानसभा का स्पीकर और डिप्टी स्पीकर सत्ताधारी पार्टी का ही है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस तथा दूसरे विपक्षी दलों का दावा लोकसभा में कमजोर पड़ गया। कांग्रेस ने बीच का रास्ता निकाल कर अपनी साख बचा ली। कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में 99 सीटों पर विजय मिली है। कांग्रेस मजबूत विपक्षी दल के रूप में उभर कर सामने आई है। राहुल गांधी संख्या बल के आधार पर नेता प्रतिपक्ष भी बन गए हैं। नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेवारी मिलने के बाद उनके वक्तव्य में भी परिपक्वता आई है। कांग्रेस अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए प्रयासरत है, जबकि कांग्रेस का बढ़ना तृणमूल कांग्रेस तथा आम आदमी पार्टी को स्वीकार नहीं है। गठबंधन में रहते हुए ये दोनों पार्टियां यह नहीं चाहती है कि कांग्रेस मजबूत हो। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने कांग्रेस के साथ कोई समझौता नहीं किया था।
वहां कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष तथा लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीरंजन चौधरी को हार का मुंह देखना पड़ा। इसी तरह आम आदमी पार्टी तथा कांग्रेस ने एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीवार उतारा। वहां कांग्रेस को अच्छी सफलता मिली, किंतु सत्ताधारी दल होने के बावजूद आम आदमी पार्टी को करारा झटका लगा। दिल्ली में कांग्रेस तथा आम आदमी पार्टी के बीच समझौता होने के बावजूद सभी सातों सीट गंवानी पड़ी। ध्वनि मत से ओम बिड़ला का निर्वाचन हो चुका है, किंतु लोकसभा स्पीकर के रूप में उनकी आगे की राह आसान नहीं होगी, क्योंकि विपक्ष इस बार मजबूत स्थिति में है।