भारत पर वैश्विक दबाव है कि वह बिजली उत्पादन में कोयले का उपयोग करे और वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोतों को बढ़ावा दे, परंतु भारत के लिए ऐसा करना फिलहाल आसान नहीं दिख रहा है, कारण कि देश में फिलहाल जल आधारित ऊर्जा स्त्रोतों की स्थिति अच्छी नहीं है और दूसरी ओर उसके कारण प्रकृृति और आम लोगों को जो नुकसान पहुंच रहा है,उसकी कल्पना नहीं की जा सकती है। पूर्वोत्तर में सुबनश्री जलविद्युत परियोजना के कारण धेमाजी और लखीमपुर के लोगों को समय-समय पर संकट का सामना करना पड़ता है। साथ ही ऊर्जा के अन्य वैकल्पिक स्त्रोतों जैसे सौर ऊर्जा, बायोमास, गोबर गैस और पवन ऊर्जा के विकास के लिए उतने कार्य नहीं हुए हैं, जो कोयला आधारित ऊर्जा का विकल्प बन सकें।
दूसरी ओर इस क्षेत्र में जी-7 ने बड़ी पहल की है। जी-7 विकसित देशों का समूह है, जिसमें जर्मनी, ब्रिटेन, अमरीका, कनाडा, फ्रांस, इटली और जापान शामिल हैं। कोयला का इस्तेमाल करने वाले बिजली घरों से दूरी बनाने पर इन देशों के बीच लंबे समय से वार्ता हो रही थी, लेकिन किसी सहमति पर नहीं पहुंचा जा सका था। कोयले से दूरी बनाना जीवाश्म ईंधनों को चरणबद्ध तरीके से प्रयोग के बाहर करने, इससे निर्भरता घटाने और ऊर्जा के भंडारण की क्षमता बढ़ाकर हरित ऊर्जा स्रोतों के ज्यादा-से-ज्यादा इस्तेमाल की दिशा में जरूरी कदम माना जाता है। इसी कड़ी में इटली के टुरिन शहर में जी-7 देशों के मंत्रियों की दो-दिवसीय बैठक में संकल्प लिया गया कि ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ते वैश्विक उत्सर्जन को कम करने के लिए ये देश साल 2035 तक निर्बाध चलने वाले कोयला बिजलीघरों का इस्तेमाल बंद करेंगे। जलवायु परिवर्तन से निपटने और ग्लोबल वॉर्मिंग को सीमित करने की दिशा में इन विकसित अर्थव्यवस्थाओं का यह संकल्प बड़ी सफलता के तौर पर देखा जा रहा है।
हालांकि,कई आलोचकों का कहना है कि यह फैसला बहुत पहले लिया जाना चाहिए था। टुरिन में हुई जी-7 बैठक की अध्यक्षता कर रहे इटली के पर्यावरण और ऊर्जा सुरक्षा मंत्री ने कोयला बिजली घरों पर लिए गए संकल्प की अहमियत रेखांकित करते हुए कहा कि यह पहली बार है कि कोयले पर एक राह और मंजिल तय हुई है। औद्योगिक देशों की ओर से यह बहुत मजबूत संकेत है। यह दुनिया को कोयला घटाने के लिए बहुत बड़ा संकेत है। जी-7 के मुताबिक उनका मसौदा इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) के नेट-जीरो रोडमैप के मुताबिक है। नेट-जीरो रोडमैप को क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वॉर्मिंग से निपटने के क्रम में अहम मापदंड माना जाता है। मई 2021 में आईईए ने एक अहम रिपोर्ट जारी की थी।
इसका शीर्षक था-नेट-जीरो एमिशंस अ रोडमैप फॉर द ग्लोबल एनर्जी सेक्टर। इसमें पेरिस जलवायु सम्मेलन में तय किए गए डेढ़ डिग्री के लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक कमोबेश व्यावहारिक रास्ता बताया गया था। इस पर चलकर वैश्विक ऊर्जा क्षेत्र साल 2050 तक नेट-जीरो का लक्ष्य हासिल कर ग्लोबल वॉर्मिंग को सीमित करने में बड़ा योगदान दे सकता है। इस नेट-जीरो रोडमैप को क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वॉर्मिंग से निपटने के क्रम में अहम मापदंड माना जाता है। इस रणनीति में ना केवल कोयला आधारित बिजलीघरों का इस्तेमाल खत्म करने की बात कही गई है, बल्कि नई कोयला खदानें ना शुरू करने और पुरानी खदानों में खुदाई आगे ना बढ़ाने पर भी जोर है। आईईए-2030 तक कोयले को और 2035 तक प्राकृतिक गैस को फेज-आउट करने की अनुशंसा करता है। ऐसे में कई पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि जी-7 साल 2035 तक ऊर्जा क्षेत्रों को डीकार्बनाइज करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध नहीं बन सका है।