मीना मुरारका
आज के दिन महामना श्री जी एल अग्रवाला जी का प्राची के प्रांगण में प्रादुर्भाव हुआ। असम राज्य के तत्कालीन असहिष्णु-हिंसक परिवेश से उद्वेलित उस संवेदनशील मानस के कालजयी चिंतन का परिणाम है - पूर्वांचल प्रहरी। अब वे पार्थिव लोक में हमारे मध्य नहीं किन्तु उनकी विराट सोच है, जिसकी गवाह है पूर्वांचल प्रहरी की अबाध यात्रा। ‘अभय’- गीता का शाश्वत संदेश - उनके चरित्र की विशेष विभूति रहा, तभी पूर्वोत्तर के अहिंदीभाषी प्रांत में एक प्रवासी हिंदीभाषी ने हिंदी पत्रकारिता के संघर्षपूर्ण क्षेत्र में पदार्पण किया। बाधाओं और संघर्ष ने कभी उनका दामन नहीं छोड़ा तब भी पूर्वांचल प्रहरी के सफर का सस्नेह स्मरण करते हुए वे कहा करते थे -
‘कितनी हारों से गूंथा है,
मैंने मेरा यह विजय हार।’
‘सर्वभूतहितेरता’ के डिंडिम उद्घोष के साथ उन्होंने पूर्वोत्तरवासियों में नव आशा-अभिलाषा व प्राणों का संचार किया। व्यवसायी समाज से होते हुए भी वे सदैव समाजचेता की ऐतिहासिक भूमिका में रहे। वह चाहे असमिया समाज हो अथवा हिंदी समाज। दोनों से ही उनका समान जुड़ाव रहा तथा इनके विकास के लिए वे सदैव समर्पित रहे। उनका मानना था - ‘‘भंवर से लड़ो, तुन्द लहरों से उलझो, कहाँ तक चलोगे, किनारे-किनारे।’’ चाहे समाज हो या सरकार - अन्याय के विरुद्ध सशक्त आवाज उठाने और समस्याओं को निदान तक पहुँचाने तक, प्रहरी का तप कभी खंडित नहीं हुआ। श्रद्धेय अग्रवाला जी का व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा जुझारू था जिसमें ‘‘न दैन्यं न पलायनं’’ - चुनौतियों के सामने झुकना या भाग निकलना लेशमात्र भी नहीं था।
वे हमारे प्रकाशस्तम्भ हैं, पत्रकारिता संबंधी उनके मूल्य हमारे आदर्श हैं जिन पर प्रहरी ग्रुप का प्रत्येक सदस्य पूर्ण निष्ठा से अग्रसर है। प्रांत और समाज, परिवार और व्यक्ति - इनसे जुड़े प्रत्येक मुद्दे हमारे लिए महत्वपूर्ण है। हम उनकी आवाज भी बनते हैं, साथ ही नियमित भाव से उनको अपनी बात कहने के लिए ‘‘नगर प्रहरी’’ तथा ‘‘लोहित भारती’’ के माध्यम से मंच भी प्रदान करते हैं। जीवन की आपाधापी में हम अपने इतिहास, धर्म-संस्कृृति, पर्व-उत्सव इत्यादि के प्रति उदासीन न हो जाएँ, इसलिए ‘‘सरोकार’’ एवं ‘‘लोहित भारती’’ के माध्यम से हम यह धारा अविच्छिन्न बनाये रखने हेतु संकल्पबद्ध हैं। सर्वसहा धरती, प्राणवायु दाता पवन, निर्मल-शीतल सलिला - हमारा पावन पर्यावरण संरक्षित रहे - इसके प्रति सबको जागरूक रखने के लिए हम नियमित समाचार देते हैं। भारत के महापुरूषों के जीवन के प्रेरक प्रसंग प्रकाशित कर हम समाज का हित संपन्न करने की प्रयत्नशील रहते हैं। साहित्यप्रेमियों के लिए हम सप्ताह में एक दिन ‘‘सृजन’’ पृष्ठ की प्रस्तुति करते हैं। ‘‘लेखन-अध्ययन’’ से हमारे पाठकों का संबंध बना रहे तथा हमारे पाठकों के साथ हमारा संवाद अबाध रूप से चलता रहे - इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु हम बीच-बीच में प्रतियोगिताओं का आयोजन भी कर रहे हैं। सारांशतः, हमारा लक्ष्य है कि हमारी-आपकी लेखनी समवेत रूप से सबके लिए हितकारी हो -
‘‘कीरति भनिति भूति भल सोई।
सुरसरि सम सबकर हित होई।’’
वैकुंठवासी श्री अग्रवाला जी की आज जन्म-जयंती है। उनके मानस-पुत्र ‘‘पूर्वांचल प्रहरी’’ की पूरी टीम आज श्रद्धापूर्वक उनका स्मरण कर रही है। उनकी पसंद एवं सिद्धांतों के अनुरूप प्रहरी अपनी यात्रा में अग्रसर है। हम पूरी निष्ठा से सच्ची पत्रकारिता की प्रतिबद्धताओं का निर्वहन करने के लिए यत्नशील हैं। आज के पावन अवसर पर प्रहरी का अपने प्रिय पाठकों से बस इतना ही कहना है -
‘‘तुमुल कोलाहल कलह में, मैं ह्रदय की बात रे मन।
चेतना थक सो रही तब, मैं मलय की वात रे मन।’’