गुवाहाटी: युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमणजी की विदुषी सुशिष्या साध्वी स्वर्णरेखाजी के सान्निध्य में आचार्य महाश्रमण स्वर्ण जयंती दीक्षा कल्याणक वर्ष धूमधाम एवं उत्साह से मनाया गया। साध्वीश्रीजी ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए फरमाया - इक्कीसवीं सदी के महान् गुरु आचार्य श्री महाश्रमण पुरुषार्थ एवं भाग्य के समवाय हैं। एकाग्रता, कठोर संयम, सहिष्णुता की योगत्रई से सबको विस्मय प्रदान करने वाले प्रभु शूर बने हुए हैं। तप से विराट बना जीवन सोने के बाट से भी नहीं तुल सकता। आत्मानुशासन, संयम की साधना की उत्कृष्टता से आचार्य श्री महाप्रज्ञजी से महातपस्वी अलंकरण से अलंकृत किया।
शब्दों की दुनिया में उलझे बिना तपस्या - साधना - अन्तर्यात्रा के द्वारा इतनी शक्ति को अर्जित की वहां शब्द भी मौन हो जाते हैं। जिनके आभावलय से निकला प्रकाश संपूर्ण धर्मसंघ को प्रकाशित कर रहा है। दीक्षा कल्याणक वर्ष के कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण रहा - कवि सम्मेलन, साध्वी स्वस्तिकाश्रीजी, साध्वी सुधांशुप्रभाजी की संयोजना में कवि सुनीलजी सेठिया, सुरेन्द्रजी पुगलिया, हेमन्तजी दफ्तरी, संदीपजी नाहटा, हितेशजी चोपड़ा, बालकवि ऋषभजी बैद ने रोचक ढंग से काव्य की प्रस्तुतियां दी। स्थानीय सभा के पचास व्यक्तियों ने मिलकर सुन्दर गीत का संगान किया तो स्थानीय महिला मंडल ने भी पचास महिलाओं से सभा-भवन को गुंजायमान कर दिया। सैकड़ों-सैकड़ों नशामुक्ति के फार्म भरवाए गए, दीक्षा कल्याणक वर्ष पर सुनिश्चित नियमों की परिपालना में हजारों व्यक्तियों ने अपना योगदान दिया।