छत्रपति शिवाजी के शासनकाल की घटना है। मुगल बादशाह औरंगजेब से उनकी बनती नहीं थी। औरंगजेब हरदम इस ताक में रहता था कि किसी प्रकार शिवाजी को कैद कर लूं। आखिर यह मौका उसे मिल ही गया और शिवाजी को अपने दो सेवकों के साथ कैद कर लिए गए। कैद खाने में ही शिवाजी ने एक योजना बनाई और निकल भागे। भागते-भागते वह मुर्शिदाबाद पहुंचे किंतु थक कर बीमार पड़ गए। उन्हें आराम की सख्त जरूरत थी। रात्रि का अंधकार सर्वत्र छाया था शिवाजी ने अपने सेवक तानाजी से विचार विमर्श किया और एक ग्रामीण के घर ठहर गए। उस ग्रामीण का नाम विनायकदेव था। बेचारा निहायत सज्जन एवं भोला था तथा इस बात से भी अंजान था कि ये दोनों आगंतुक कौन हैं।
विनायकदेव की सेवा से शिवाजी चंगे होने लगे किंतु घर की निर्धनता के कारण विनायक कुछ परेशान था। कभी-कभी तो ऐसा होता कि शिवाजी को खिलाने के बाद घर में कुछ नहीं बचता तब विनायकदेव पानी पीकर ही चुप से रहता या थोड़ा-सा नमक चाट लेता। एक दिन शिवाजी ने विनायक को नमक चाटते देख लिया। मन ही मन वह खूब रोए और निश्चय किया कि इस सज्जन की गरीबी जरूर दूर करूंगा। कैद खाने से शिवाजी को फरार देख औरंगजेब ने घोषणा कराई कि जो कोई भी शिवाजी का पता बताएगा उसे पांच हजार स्वर्ण मुद्र्राओं का नगद पुरस्कार दिया जाएगा। शिवाजी ने घोषणा सुनी तो सोचन लगे- ''मैं यदि पकड़ा जाऊं तो इस निर्धन सज्जन को पांच हजार स्वर्ण मुद्राओं का पुरस्कार मिल सकता है।" ऐसा सोचकर उन्होंने लिखा ''मैं जिससे पत्र भिजवा रहा हूं उसी के घर में मौजूद हूं । "पांच हजार स्वर्ण मुद्राएं इस निर्धन को दे दो और मुझे पकड़ ले जाओ।"
पत्र लिखकर शिवाजी ने विनायक को थमाया और कहा- ''यह मुगल सूबेदार को दे आओ।" विनायक भोला-भाला था ही उसने पत्र मुगल सूबेदार को थमा दिया। पत्र पढ़कर सूबेदार खुशी से विभोर हो गया और विनायक के साथ रुपयों की थैली लेकर आया। वायदे के अनुसार शिवाजी मौजूद थे। सूबेदार ने पांच हजार मुद्राएं विनायक को दे दी और शिवाजी को हथकड़ी पहनाकर ले चला। तानाजी लौटे तो शिवाजी को न पाकर स्तब्ध रह गए। विनायक ने रो-रोकर बताया कि मुगल सूबेदार उन्हें पकड़ ले गए। तानाजी अपने स्वामी शिवाजी की उदारता से परिचित थे। वह समझ गए कि इसी भोले आदमी के कारण उन्होंने अपने को संकट में डाला है। तब सारी सच्ची बातें उन्होंने विनायक को बताते हुए कहा। ''तुम्हारे अतिथि स्वंय छत्रपति शिवाजी थे और मैं उनका सेवक तानाजी हूं।"
अब तो विनायक के दुख का ठिकाना न रहा। पांच हजार मुद्राओं की थैली वह आग में जलाने को उद्यत हुआ तो तानाजी ने समझाया। ''चलो इन मुद्राओं से कुछ आदमी भाड़े पर लें और लड़कर शिवाजी को छुड़ाएं।" विनायक तुरंत तैयार हो गया। सूबेदार जंगल के रास्ते से शिवाजी को ले जा रहा था। अचानक तानाजी उस पर टूट पड़े। भारी युद्ध हुआ किंतु अंत में सूबेदार मारा गया। शिवाजी मुक्त हुए और उन्हें सूबेदार की टुकड़ी का बहुत सारा सामान भी प्राप्त हुआ। विनायक ने उन्हें प्रणाम किया और फूट फूट कर रो पड़ा। शिवाजी ने उसे सांत्वना दी और अपने राज्य को वापस लौट गए।