जिन बातों को कहना था 

उन बातों को कहना हम भूल गए

बातों ही बातों में 

जिक्र उनका करके

उन बातों को आवारा तुम कर गए

कहने से पहले ही हम 

बातों में उलझ गए

गजब हैं ये बातें भी 

आती-जाती रहती हैं 

कभी ख्यालों में 

कभी लब पर 

कभी जुबां पर

आते-आते रुक जाती हैं 

इधर की, उधर की 

सबकी कहती हैं 

जो कहनी होती हैं जरूरी

समय पर गुम हो जाती हैं 

उम्र बीत रही है 

क्या करना -

अब उन बातों का 

जिन्हें तुम कह न सके 

हम अफसोस करते ही रहे गए

बच गईं हैं सिर्फ बातें 

कुछ हमारी, कुछ तुम्हारी ।

          कोलकाता