ओ समय, सुनो तुम ठहर तनिक
क्यों हर-पल चलते जाते हो !
मैं पीछे-पीछे भाग रही
तुम हर पल बीते जाते हो।
अभी-अभी उस दिन ही तो
यह नया कलेंडर बदला था
झपकी ही नहीं पलक अब तक
तुम नवल कलेवर पाते हो!
मेरी धक्-धक्, तेरी टिक-टिक
ये संग-संग आरंभ हुए
कैसे मैं प्यार करूं तुमसे
जब साथ न कभी निभाते हो!
मैं थकी-रुकी, छूटी पीछे
नहीं ताल से ताल मिला पाई
पर कहां तुम्हारे पास हृदय!
निर्मोही बढ़ते जाते हो।
अच्छा छोड़ो, इन बातों को
बस एक बात सिखला जाना
जीवन के भूचालों में भी
कैसे हरदम मुसकाते हो !!