अफगानिस्तान से अमरीकी सेना वापस लौट चुकी है। तालिबान ने अब पूरी तरह से एयरपोर्ट और दूसरी जगहों पर कब्जा कर लिया है। एक सवाल, जिसने कई बड़े देशों को चिंता में डाल दिया है, वह 85 बिलियन डॉलर का है। इसका जवाब अभी मिलना बाकी है। अफगानिस्तान में मौजूद अमरीकी सेना के एयरक्रॉफ्ट, हेलीकॉप्टर और खतरनाक हथियारों की कीमत 85 बिलियन डॉलर बताई जा रही है। अमरिका ने दावा किया कि उसने तालिबान के हाथ लगे अपने अत्याधुनिक एयरक्रॉफ्ट, बख्तरबंद गाड़ियां व रॉकेट डिफेंस सिस्टम को निष्कि्रय कर दिया है। बीएस सिवाच, एयर कमोडोर (रिटायर्ड) का कहना है, अफगानिस्तान से निकलते वक्त महाशक्ति यानी अमरीका से बड़ी चूक हो गई है। तालिबान के पास अमरीका के जितने भी एयरक्राफ्ट या हेलीकॉप्टर हैं, उनका बखूबी इस्तेमाल होगा। पाकिस्तान के पायलट वहां जाकर उन्हें उड़ा सकते हैं। पड़ोसी देश की वायु सेना के पास इंजीनियरिंग विंग और प्रशिक्षित पायलट हैं। चीन, इन उपकरणों की रिवर्स कॉपी तैयार करने के लिए उतावला हो रहा है। यह भी संभव है कि इन उपकरणों को तैयार करने वाली अमेरिकन कंपनियों के स्टाफ को भारी वेतन पर अफगानिस्तान लाया जा सकता है। अफगानिस्तान में 4 सीब-130 ट्रांसपोर्ट्स, 23 एम्ब्रेयर ईएमबी 314/ए29 सुपर सुकानो, 28 सेसेना 208, 10 सेसेना एसी-208 स्ट्राइक एयरक्रॉफ्ट' फिक्सड् विंग एयरक्रॉफ्ट मौजूद हैं। साथ ही 33 एमआई-17, 33 यूएच-60 ब्लैकहॉक व 43 एमडी 530 हेलीकॉप्टर हैं। एयर कमोडोर (रिटायर्ड) बीएस सिवाच कहते हैं, भले ही अमेरिका इन्हें निष्कि्रय करने का दावा कर रहा है, लेकिन ये दोबारा से उड़ सकते हैं। पहला तो इनके लिए पायलट लाने होंगे। दूसरा, इंजीनियरिंग है, इसमें तकनीकी जानकारी के अलावा पुर्जे भी शामिल हैं। अब ये साफ हो गया है कि चीन, पाकिस्तान और रूस जैसे देश अफगानिस्तान को मदद दे सकते हैं। पाकिस्तानी एयरफोर्स में ऐसे पायलट हैं, जो तालिबान के कब्जे वाले यूएस एयरक्रॉफ्ट को उड़ा सकते हैं।
बीस वर्षों बाद अमरीका ने छोड़ा अफगानिस्तान
